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Showing posts from June, 2018

इंतजार ओर व्यवस्था

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कुछ ऐसा हो जो हमारे हक में हो। कुछ ऐसा हो जो हमारे विचारों में या हमारे विचारों से प्रभावित हो।हमे लगता हैं कि हम कुछ नही कर पाते हैं। मेरे एक दोस्त हैं। बारिश के बारे में सच्ची आगाही कर सकते हैं।उनका कहना हैं कि वारिश की आगाही करने के लिए उनके होरे आने चाहिए। ये होरे को हमारे वेदों ने भी स्थान दिया हैं।कोई भी पंचांग ऐसा नही होता जिसमें ये होरे न छपे हो।मगर हम होरे का अभ्यास नहीं करते ओर बारिश की राह देख रहे होते हैं। हम भी जब किसी की राह देख ते हैं तो हमे उसका इंतजार होता हैं।जैसे हमे बारिश का इंतजार होता हैं।बारिश आती हैं साथ में कीचड़ ओर अन्य सवाल भी सामने आते हैं।बस,वैसे ही हम जिसका इंतजार करते हैं,साथ में कुछ ऐसा आ ही जाता हैं जो हमे ओएसन्द नहीं। एमजीआर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम बारिश का इंतजार न करे।बस,आदत सी बनालो ओर बारिश को प्यार करो। @#@ बारिश हैं तो बबाल हैं। बारिश नहीं तो हाल बेहाल हैं। क्यो डोर होंगे हम बारिश से, बारिश का सदैव इंतजार हैं।

भगवान की सरकार

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एक पोस्टर। जैसे दिमाग हिला गया हो। एक बच्चा।जो कूड़ा इकठ्ठा करता हैं।किसी शो रूम के सामने खड़ा हैं।लिखा हैं।उसे समझ ने के लिए हमे कुछ नहीं चाहिए।हमे सिर्फ उसे समझ ने के साथ देखना और समझना हैं।इस बात को समजीए ओर इस बात को इर फैलाए।सबके साथ सब कुछ नहीं होता।किसी ने खूब कहा हैं। किसको क्या मील इसका कोई हिसाब नहीं। तेरे पास रूह नहीं,मेरे पास लिबास नहीं।' ऐसा कई बार होता हैं। जब मोबाइल में बैलेंस हैं,तो नेट नहीं।नेट हैं तो बैटरी नहीं।दो ने हैं तो सामने वाले को वख्त नहीं।उन्हें वख्त हैं तो अभी हमारा समय नहीं।सबकुछ ठीक हैं तो ओर कुछ काम हैं। मोरारी बापू कहते हैं कि जो व्यक्ति 5 मन घेहु खरीद सकते हैं,वो उसे उठा नहीं सकते।अगर कोई उठाने की ताकत रखता हैं तो उसके पास खरीदने की ताकत नहीं होती हैं। यही जीवन हैं। हमे सोच समझकर इसे निभाना हैं।अगर कोई कुछ गलती करता हैं तो उसे सुधारनी हैं।भगवान ने तो हमे ये जीवन दिया हैं।सरकार हमे सुविधा देती हैं।हम इसमें अपने आपको आगे ले जाना हैं।आप भी अपनो के साथ जिंदगी को ऐसे ही स्वीकार करके आगे बढ़ाए। मेरव एक दोस्त हैं। भूतान में शिक

नई सोच

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सर, में बच्चो को पढा रहा हूँ। हर साल कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जो एक समान गलती करते है।ट ओर ड लिखने के अलावा और भी ऐसी गलती या समज बना लेते हैं जैसे कि गुजराती में 2 याने उल्टा 6 लिखना। बच्चे याद भी ऐसे रखते हैं।एक ऐसा सवाल आया।मेने उन्हें मिरर इफेक्ट वाले वर्ण ओर क्लॉक वाइज ऐंटी क्लॉक वाइज लिखने के बारेमें बताया। कुछ दिन हुए। मेरे किसी एक दोस्त ने मुजे ओर फोटोग्राफ भेजे।आधा चित्र बनाया हैं।आधा मिरर में दिखता हैं।ऐसा करके उन्होंने भीत सारे चित्र ओर जानकारी बच्चो से शेर की हैं।फोटोग्राफ से ही दिखता हैं कि बच्चे खुशी खुशी इससे जुड़े हैं। ऐसी बहोत सारी एक्टिविटी हैं,जो उन्हें स्कूलमें आने के किए राजी करती हैं।ओहले स्कूल आएगा पप्पू तो पढ़ेगा पप्पू। ऐसे अध्यापक जो नया सोचते ओर समजाते हैं। @#@ बच्चो को क्लासरूम में लाने के लिए जो भी प्रयत्न हैं,उसे हम पसंद करते हैं।ऐसी जानकारी फैलाने वाले शिक्षा के स्वयम सेवक माने जाने चाहिए।

JASUBHAI M. PATEL

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I would like to be known as someone who used his personal hobbies to improve the quality of primary education. I have always endeavoured to increase the knowledge base of children through my collections of stamps (Indian and foreign), envelopes, post cards, inland letters, coins and currency notes. Stamp collections as teaching aids During my childhood, when I was in class 1 or 2, I used to paste torn off calendar leaves on to the plain windows of my house. Indian stamps also found a place on my windows. This was before 1947. Stamp collection emerged as a natural sequel. My father was a farmer and I had to help him during the day. But in the evenings I used to review my collection of Indian stamps and dream of enlarging it. My parents did not care for my fascination with stamps. When I asked for small amounts of money for stamps they thought I was wasting their money. I had to lie that this work would fetch me a lot of money in the future. This satisfied them. I cannot forget

NANJI KUNIA

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I entered primary school in 1946 at the late age of 11 years. At that time a teacher whom I consider my guru, Shri Nagardas, persuaded a group of 25 boys to undergo education. We used to prepare dramas which focused on prevention of alcoholism and social problems. I was a bright student and won many prizes. I completed my schooling in 1954 and entered high school. But my guru called me back and asked me to become a primary teacher. I started my career as a primary teacher in Thakarwada in September that year. My guru has been the source of inspiration for whatever I have achieved. Early years I started teaching the first standard, but was immediately shifted to the seventh standard. Very early on I was able to achieve pass results of 95 to 100 per cent. This motivated me. Whenever the inspectors remarked that I was well trained, not knowing that my training was very limited, I felt very happy. In the mid-fifties we introduced night classes for standard six and seven student

સાચું શું...

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કેટલીક બાબતો જોઈએ. આ વિગતો ને આધારે આપણે જ નક્કી કરીએ કે શું કરવું જોઈએ.સમય સાથે કદમ મિલાવનાર જ સફળ થાય છે.આ માટે બે બાબતો જોઈએ. પહેલી વાત એ કે નોકિયાએ એન્ડ્રોઇડ ના સ્વિકાર્યુ. સાથે બીજી વાત એ કે યાહૂએ ગુગલને નકારી દીધી. આ બે વાર્તા કે વાર્તાઓ પુરી થઇ. આ બે વાર્તાઓ માં શું શીખ્યા? આ બે સત્ય બાબતો ને આધારે નીચેની બાબતો સમજી શકાય. ● જોખમો લો. ● બદલાવને સ્વીકારો ● તમે સમય સાથે બદલતા નથી તો તમે નાશ પામી શકો છો. આ સાથે બીજી બે વાર્તાઓ જોઈએ. 1. ફેસબુકે વોટસ્ અપ અને ઇન્સટાગ્રામ ખરીદી લીધી. 2. ફ્લિપકાર્ટે મંત્રા ખરીદી લીધી અને ફ્લિપકાર્ટે ખરીદેલ મંત્રાએ જબોંગ ખરીદી લીધી.     આ બે બીજી વાર્તાઓ પણ પુરી થઇ.બોલો શું સત્ય...સાથે શું શીખ્યા? ● તમારા પ્રતિસ્પર્ધીઓને તમારા સાથીદાર બનાવી બને તેટલા વધુ શક્તિશાળી બનો. ● ટોચ સુધી પહોંચો અને પછી સ્પર્ધા ના કરશો. ● હંમેશા નવુ નવુ અપનાવતા રહી નવું શિખતા રહો. આ ઉપરાંત આવી જ બીજી બે બાબત જોઈએ. 1. કર્નલ સેન્ડર્સે 65 વર્ષની વયે કેએફસી(KFC) ની સ્થાપના કરી હતી. 2. જેકમા, જેમને કેએફસી(KFC) માં નોકરી ના મળી, અને અલીબાબા કંપની શરૂ કરી.

मेरी कहानियां

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एक साथ 14 कहानिया। हर कहानी के 8 पेज।दमदार चित्रांकन।अच्छी पेशकश ओर तैयार हुआ आए विशेष वार्ता संग्रह।रिलायबल ग्रुप के साथ ये काम किया। मुजे सिर्फ कहानिया लिखनी थीC।चित्रवार्ता।बालमंदिर में अभ्यास करने वाले बच्चों के लिए ये कहानियां लिखी गई।मुझसे ये काम बहोत कम दिनों में करवाया गया।14 कहानियां लिखने के लिए मुजे समय नहीं मिला। बहोत कम समय,कहिए कि 3 दिनोंमें आए सारी कहानिया लिखनी थी।गुजराती में लिखने के बाद हमने ये कहानियां हिंदी और अंग्रेजी में अनुवादीत की हैं। पूर्व प्राथमिक ओर प्राथमिक कक्षा के बच्चों के लिए ये कहानियां लिखी गई हैं।कुछ दिनों में उसे उनके उपभोगता तक पहुंचादी जाएगी। ऐसी 14 कहानियों को एक साथ लिखना,उसके चित्र बनाना और अन्य दो भाषा में अनुवादित करना मुश्किल था।मेने कुछ साथियों से सहयोग लिया और कहानिया तैयार हुई। @#@ कहानी लिखना आसान हैं। मगर उसके उपभोगता जितनी कम आयु वाले होंगे उतनी कहानी लिखने में भारी हो जाएगी।

આવો મારી શાળાએ...

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"છે સ્વર્ગથીયે વહાલી અમને અમારી શાળા. મા શારદાનું મંદિર અમે એના પૂજવાવાળા." આ પંક્તિ જ મૂળમંત્ર છે. ખરા અર્થમાં તેને મૂર્તિમંત થયો હોય તેવી એક શાળા. આવી  સુંદર મજાની શાળા એટલે શ્રી શાંતીવન પ્રાથમિક શાળા.મોરબી જીલ્લાનું ઘરેણું કહેવાય એવી શાળા. શાળાના પ્રાંગણમાં પ્રવેશતા જ શાળાની દિવાલોને વાચા ફૂટેલી લાગે. શાળાની દીવાલો આપનું સ્વાગત કરે તેવો જાણે અનુભવ થાય. શબ્દમાં કદાચ ન વર્ણવી શકાય તેવી અદ્વિતિય શાળાને જાણવા અને માણવા શાળાની મુલાકાત તો લેવી જ ઘટે. આ શાળાને જીવંત બનાવનાર શિલ્પી એટલે મનનભાઈ બુદ્ધદેવ.કવિવરશ્રી રવિન્દ્રનાથ ટાગોરની પંક્તિ કે, ."તારી હાક સુણી કોઇના આવે તો તુ એકલો જાને રે" ને મનનભાઈ એ જાણે આત્મસાત કરેલ છે.એચટાટ ની યોજનાને આધારે તેઓ આ શાળામાં હાજર થયા. શ્રી મનનભાઇ બુદ્ધદેવ પોતાના સબળ નેતૃત્વના કારણે શાળામાં આમૂલ પરિવર્તન લાવી શક્યા છે.કાયમ માટે હકારાત્મક વલણ સાથે નવતર વિચારોનો અમલ કરી  શાળાની આગવી ઓળખ ઉભી કરવામાં સફળતા મળી છે.વિદ્યાર્થીઓ પ્રત્યેનો અપાર પ્રેમ, જવાબદારી કે કામ અંગેની નિષ્ઠા સાથે વ્યાવસાયિક સજ્જતા ધરાવતા આ શિક્ષક.કહેવાય કે શિક્ષણ

KANTILAL B. DONGA

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I was a pupil of the well-known educationist and administrator of Saurashtra, Shri Dholarrai Mankad. He influenced me greatly. The institutions in which I studied, Gopaldas Maha Vidyalaya and Aliyapada Adhyapan Mandir at Dhoraji, inspired me to become a good teacher. The Gondal area of Saurashtra had a tradition of compulsory education when it was under princely rule. The former ruler of Gondal state, Shri Bhagvatsinhji, was a far-sighted ruler. I have great admiration for his educational administrative acumen. The literacy levels in this area were reasonably good when we undertook the literacy mission in our village. My main educational goals have been the following: • Improvement of the physical environment of the school. • Children-run children’s shop (self management). • Publication of compilations by children. • Developing creativity in children. • Instruction in the Ramayan and the Gita. • Teachers’ credit cooperative in school. When I started working in my

ईद की राम राम

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रे भाई... तन्ने ईद की राम राम। हरियाणवी भाषा में ये संवाद हैं।एक चौधरी चाचा अपने पडोशी को रोजाना राम राम करते हैं।ईद के मौके पर सामने मिलते है।चाचा चौधरी उन्हें ईद पर्व के राम राम करते हैं।सामने वाला भी उसका स्वीकार करता हैं। हरियाणा के काजल कुमार अच्छे कार्टूनिस्ट हैं।उन्हों ने हमारी संस्कृति को पकडकर एक दमदार कार्टून बनाया हैं। @#@ तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा। इंसान की औलाद हैं,इंसान बनेगा।

कोंन खुश

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बच्ची ओर मा। दोनो साथ चल रहे हैं। मा कुछ सोच के साथ चल रही हैं।बच्ची जो हैं बहोत खुश हैं।सीधा दिखता हैं कि उसकी किताबे लाई गई हैं,सो वो बहोत खुश हैं।सोचिए अपने कंधे पे इतना बोझ वो लड़की कैसे उठा पाएगी। उसकी माँ शायद इसी फिक्र में चलती हैं। गुजरात काउंसिल ऑफ एज्युकेशन रिसर्च एंड ट्रेंनिग(GCERT) के पूर्व नियामक श्री नलिन पंडित ने मुजे ये फोटो भेजा हैं। क्या शिक्षा इतनी भारी भी हो सकती हैं।क्या ऐसे ही पढ़ाई खत्म करके हम समृद्ध भारतका निर्माण करेंगे?क्या ऐसे ही स्किल्ड भारत का निर्माण होगा?आज की शिक्षा व्यवस्था में कई सवाल हैं।उन सवालों के सामने हम क्या कर सकते हैं? हमे क्या करने की आवश्यकता हैं,ऐसी बहोत सारी समस्याएं हैं जो आज भी नजर अंदाज की जा रही हैं। @#@ जॉय फूल लर्निग पसंद करने वाले मातापिता आने बच्चो को लर्निग के साथ जॉय कर पाए ऐसी स्कूल में दाखिल करवाने के लिए नहीं सोचते हैं।आज तो सिर्फ परसेंटाइल की बात चलती हैं।

કલામ સર : ઇફતાર

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અબ્દુલ કલામ. સિર્ફ નામ કાફી હૈ. ભારત રત્ન,મિસાઈલ મેન અને પૂર્વ રાષ્ટ્રપતિ એ.પી.જે.અબ્દુલ કલામ. રાષ્ટ્રપ્રેમી અને વિચારક અબ્દુલ કલામ.એમનો ફોટો ઘરમાં રાખવો ગમે.હું એમને 5 વખત નજીક થી જોઈ અને મળી શક્યો છું.મારા માટે એ જાણે જન્નત છે.એમની સાથેના મારા ફોટો ક્યારેય શેર કર્યા નથી.કદાચ એ યોગ્યતા મારી ન હોવાનું માનું છું.રમજાન મહિનામાં ઇફતાર નું આયોજન થાય.રાજકીય પક્ષો અને સૌ કહેવાતા મોટા માથા ઇફતાર પાર્ટીનું આયોજન કરે અને વધુ મોટા થવા મહેનત કરે.આવું કરે એ કલામ નહીં. આ વાત ક્યાંક વાંચેલી છે.આ વર્ષ 2002ની વાત છે. ડો.એ.પી.જે. અબ્દુલ કલામ ભારતના રાષ્ટ્રપતિનો હોદો સંભાળ્યો અને થોડા સમય બાદ પવિત્ર રમઝાન માસ આવ્યો. વર્ષોથી રાષ્ટ્રપતિ ભવનની એક પ્રણાલીકા રહી છે કે રમઝાન માસમાં ભારતના રાષ્ટ્રપતિ દેશની ગણમાન્ય મોટી-મોટી હસ્તીઓને ઇફતાર પાર્ટી આપે. આ વખતે તો રાષ્ટ્રપતિ પોતે જ મુસ્લીમ હતા એટલે રમઝાનની ઇફતારનું જોરદાર આયોજન કરવાનું રાષ્ટ્રપતિ ભવને નક્કી કર્યુ. ડો.કલામે એમના મિત્ર જેવા પી.એમ.નાયરને કહ્યુ, "આ ઇફતાર પાર્ટીમાં તો બધા ધનિક લોકો જ આવે. એ લોકોને જમાડો કે ન જમાડો એનાથી શું ફેર પડવાન

વિવેકાનંદ: :પત્ર અને વેદના

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સ્વામી વિવેકાનંદ.સમગ્ર વિશ્વમાં હિન્દુ ધર્મને ઓળખ અપાવનાર વિવેકાનંદ.એમનું સાચું નામ નરેન્દ્ર.તેમનું બાળપણ ખરેખર વાંચવા લાયક છે.એમના કર્યો તો વિવેકાનંદને નામે આપણે જાણીએ જ છીએ પણ નરેન્દ્ર તરીકેનું જીવન ઓછું ભવ્ય ન હતું. દેશ વિદેશના લોકોની સાથે વિવેકાનંદ પત્ર વ્યવહાર કરતા.એવો જ એક પત્ર, સ્વામીવિવેકાનંદજીનો પ્રેણાદાયી પત્ર આપને વાંચવો ગમશે. સ્વામીવિવેકાનંદ જી શિકાગો હતા.શિકાગો થી તેમણે ૨૯ જાન્યુઆરી ૧૮૯૪ ના રોજ દીવાન સાહેબશ્રી હરિદાસ બિહારીદાસ દેસાઈનેં લખેલો આ પત્ર છે. મને આ પત્ર શ્રી લાલભાઈ દેસાઈ એ મોકલ્યો છે.જે ડીસા ખાતે શિક્ષક તરીકે રાષ્ટ્ર સિંચન કરવામાં મશગુલ છે. તો પત્રની વાત... પ્રિય દીવાનજી સાહેબ. આપનો પત્ર મને થોડા દિવસ પહેલાં જ મળ્યો. આપ મારી દુઃખિયારી મા અને ભાઈઓને મળવા ગયા હતા તે સાંભળી પ્રસન્નતા થઈ. આપે મારા હૃદયના એકમાત્ર કોમળસ્થાનને સ્પર્શ કર્યો છે. દીવાનજી આપે જાણવું જોઈએ કે હું કોઈ પથ્થર હૃદય પશુ નથી દુનિયામાં જો હું કોઈને પ્રેમ કરૂ છું તો તે મારી માતાને. એટલા માટે જ મારા સામે એકબાજુ હતું ભારત તથા આખી દુનિયાના ધર્મોના વિષયમાં મારા કલ્પિત સ્થાન અને એ લાખો નર-ના

माराडोना:पेले

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आज कल विश्व में दो चर्चा तेज हैं।एक अमेरिकन प्रमुख ओर साउथ कोरिया के शासक का स्नेह मिलन ओर वर्ल्ड कप फुटबॉल प्रतियोगिता। जब भी फुटबॉल की बात चलती हैं,एक खिलाड़ी का नाम सदैव सामने आता हैं।फुटबॉल में दो दिग्गज भगवान माने जाते हैं।उन दो नो के बारे में थोड़ी बात करेंगे। मेरेडोना सदा के लिए फुटबॉल ग्लेमर में सबसे आगे हैं।सिर्फ पांच फुट की हाइट के साथ विश्व में उनके नाम से 34 गोल किखे जा चुके हैं।उन्होंने आज तक 21 विश्वकप की मैच खेळी हैं,उसमें उन्होंने 21 गोल दागे हैं।उन्होंने 1982 से 1994 तक चारो वर्ल्ड कपमें खेला हैं।1986 में उन्होंने अर्जेंटीना को विश्व विजेता बनाया था। वैसा ही दूसरा खिलाड़ी हैं पेले।उन्हें इस गेम के पर्याय के रूप में देखा जाता हैं।पूरे ब्राजील में फुटबॉल को उनके बजह से अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई हैं।1958 से 1970 तक वो विश्वकप में खेले थे।उनकी टीशर्ट पे सदा 10 नम्बर लिखा होता था।उन्होंने आज तक 77 गोल दागे हैं,उसमें से 12 वर्ल्ड कप के लिए थे।उन्होंने 3 बार ब्राजील की विश्व चेम्पियन टीम का हिस्सा बने थे।भारत में सिर्क क्रिकेट को ही खेल मन जाता हैं।बाकी की

हमारी चाह....

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हम क्या चाहते हैं। सबसे फके उसे तय करो। जो तय करते हैं इस के लिए आप कर ही पाएंगे ऐसे खयाल रखो।ऐसा खयाल ओर ऐसी जानकारी और इस के पीछे किया गया काम आप उसे कर पाएंगे ऐसा विश्वास दिलाता हैं। ऐसा विश्वास और ऐसी हिम्मत ही हमे सफल बनाने के लिए काफी हैं।सवाल ये हैं कि जो भी तय किया हैं उसे हम हांसिल करना क्यों चाहते हैं।इसका जवाब अलग अलग हो सकता हैं।हम ऐसे सवाल ओर उस के जवाब भी खोजने चाहिए। मन चंगा तो कथरोट में गंगा। मन बनाना हैं।गुजरात के सीनियर केबिनेट मंत्री और राजकीय अग्रणी एवं शिक्षा मंत्री श्री भुपेंद्रसिंहजी चुडासमा जी का ये तकिया कलाम हैं 'मन बनालो' यही आजका संदेश हैं,जरूरत हैं।एक प्रज्ञा चक्षु याह्या सपाटवाला अगर दो बार यूनिवर्सिटी में गोल्ड मेडल प्राप्त कर पाते हैं,phd के लिए दो बार नीट पास कर सकरे हैं तो हम देखने वाले क्यो बड़ा करने का न सोचें? @#@ आज सोचो ओर आज से अमल करो।जो होगा अच्छा होगा या हो पायेगा।यही सफ़लताकी निशानी बन सकती हैं।

14 जून ओर क्रांति

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थोड़े दिनों पहले की बात हैं।14 जून की बात हैं।उस दिन विश्व के समृद्ध क्रांतिकारी की जन्म जयंती थी।उनका नाम हैं चे ग्वेरा।अपने देश के सन्मान को उन्होंने इतना ऊंचा चढ़ाया की आज विश्वमें उन्हें याद किया जाता हैं।उनकी फोटो हमारे लिए पहचानी हुई होगी।टीशर्ट वे ये फोटो आपने अवश्य देखी होगी। 'चे ग्वेरा ने कहा था :- "एक क्रांतिकारी डॉक्टर बनने के लिए, या फिर कहें कि एक क्रांतिकारी ही बनने के लिए, एक क्रांति की जरूरत होती है। अलग थलग रह कर किये गए निजी प्रयास, अपने तमाम आदर्शों की पवित्रता के बावजूद, किसी काम के नहीं होते, और अगर कोई आदमी अकेले ही काम करते हुए, अमेरिका के किसी कोने में किसी बुरी सरकार और प्रगतिरोधी सामाजिक परिस्थितियों के खिलाफ लड़ते हुए, किसी महान आदर्श के लिए पूरी जिंदगी का बलिदान भी कर देता है तो भी उससे कोई फायदा नहीं होता। एक क्रांति को पैदा करने के लिए हमारे पास वह होना चाहिए, जो आज क्यूबा में है, यानि पूरी जनता की लामबंदी। और अंततः आज आपके सामने, अन्य सभी बातों से ऊपर, एक क्रांतिकारी डॉक्टर, यानि कहें तो वह डॉक्टर जो अपने पेशे से सम्बंधित तकनीकी ज्ञा

कुछ खास

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कुछ खास हैं,क्यो की वो हमारे आसपास हैं।हम बहोत सारी चीजें ऐसी देखते हैं कि जिस की वजह से हमे उसे बार बार याद करने का मन करता हैं।कुछ बाते ऐसी होती हैं जो हमे कुदरत के करिश्मो की तरह होती हैं। आज का ये फोटो भी वैसा ही हैं।एक बच्चा स्कूल बैग के साथ निकला हैं, उसने जैसे सूरज को अपने पैरों के नीचे पकड़ लिया हैं। अगर सूरज सिद्धि हैं तो वो बच्चा एक प्रयत्न कर्ता हैं।हो सकता हैं ये फोटो खींचने के लिए समय और समझ को खर्चा होगा एमजीआर उसका संदेश अच्छा मिलता हैं।आप भी ऐसे फोटोग्राफ हैं तो मुझतक पहुंचाए।आप के फोटो के लिए फोटो लाइन लिखके 'Bee The Change' में शेर करेंगे। @#@ आज की ये पोस्ट आप के सहयोग के लिए हैं।रोज लिखना पसंद हैं मगर कभी कभी विषय नहीं मिलता।मुजे या मुझसे लिखवा ने के लिए सहयोग करें।

गांधी के विचार

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गांधी एक व्यक्ति। गांधी एक विचार। कहिए कि गांधी एक विचारधारा। आज भी गांधी विचार से जीने वाले लोग हमारी आसपास होते हैं।ऐसे लोग जो हमारे लिए आदर्श होते हैं।किसी एक जगह जब गांधी को याद करना होता हैं,सभी उन्हें चरखे के लिए याद करते हैं। गांधी याने चरखा ही नहींआज के समय में अगर गांधी हिट तो शायद टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देते।बापू बेरिस्टर थे,ओर अपने कर्म को वो लोगो के सामने रखते थे।कुछ लोग उन्हें जुनवानी कहते हैं।कुछ लोग उन्हें अशक्त कहते हैं।मगर गांधी एक विश्व विभूति हैं।दुनियाका कोई देश ऐसा नहीं जहाँ बापू के नाम का रास्ता या चोक न हो। आज के समय में गांधीजी को अहिंसा के लिए याद करना जरूरी हैं।किसी के सन्मान को ठेस पहुंचाना एक तरफ से हिंसा हैं।ऐसी हिंसा के लिए हम हमारी जिंदगी को बर्बाद करते हैं।किसी का अपमान करना अगर हिंसा हैं तो किसी को सन्मान देना अहिंसा माना जाना चाहिए।महर ऐसा नहीं हैं। @#@ सिर्फ बाते करने से जीवन गांधी जैसा नहीं होता,जो कहते हैं उसे करना भी पड़ता हैं।निभाना भी पड़ता हैं।

हमारी जिम्मेदारी

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व्यक्तिगत और सामूहिक। हम दो तरीके से काम करते हैं। हर बार सफलता मिलने के लिए ही हम प्रयत्न करते हैं।मगर वो संभव नहीं हो रहा हैं। जब हमारे बहोत सारे प्रयत्न के बावजूद भी हम सफल नहीं होते हैं तो हमे दुख होता हैं।मैनेजमेंट में सफलताके लिए 14 प्रयत्नों को समजाया गया हैं।क्या हमारे पास एक ही काम 14 तरीको से या 13 से अधिकबार करने की धीरज हैं। कोई लक्कड़ हार 95 वे बार कुहाड़ी को मार के पेड़ काटने की कोशिश करता हैं,हो सकता हैं 95 प्रयत्नों के बाद वो असफल रहा हो।अब हीग ये की कोई दूसरा व्यक्ति सिर्फ 5 बार कुहाड़ी मारकर पेड़ काट लेता हैं।किस के प्रयत्नों से ये हुआ!पहले लक्कड़ हारे के कारण या दूसरे ने ही ये कर लिया। हम असफल होंगे तो वो असफलता हमारी हैं।अगर हम सफल होंगे तो लोग उसके बाद हमे विशेष व्यक्ति बनादेंगे।कहते हैं कि ताला खोलने के लिए अगर 10 चाबी हैं,तो हमे दस चाबी खत्म होने तक हमारी कोशिश नहीं छोड़नी चाहिए। @#@ कोशिश करना हमारा कर्तव्य हैं,कर्तव्य को पूरा करने का हौंसला ओर शक्ति भगवान या कुदरत से मिल जाती हैं।