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Showing posts from April, 2019

पहले चुनाव की सबसे बड़ी समस्या

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कुछ भी काम अगर करना हैं तो सामने सवाल भी बहोत सारे होंगे। आजकल चुनाव का माहौल हैं। आज हम EVM से चुनाव कर रहे हैं। आज से कुछ साल पहले विधानसभा ओर लोकसभा के चुनाव के दौरान मतपेटी का इस्तेमाल होता हैं। जो चुनाव बैलट से होते हैं।वो सारे मतदान पेटी में मत डालने से होता हैं। भारत में लोकसभा का पहला चुनाव था। मुख्य चुनाव आयुक्त के सामने सवाल था की मतपेटी कैसी बने।दूसरा सवाल था की मतदान के बाद उसे कोई खोल न पाए ऐसी व्यवस्था भी चुनाव के लिए महत्वपूर्ण थी। चुनाव आयोग ने हर मत पेटी को ताला लगाने का फैसला किया था। अब होता यरे था की ताले से चुनाव आयोगका खर्च दुगना हो जाता था।1.96 लाख मतदान मथक के लिए 12 लाख 84 हजार मतदान पेटी बनानी थी। इसे बनाना था। कोई भी मेन्यूफेक्चरिग यूनिट चार महीनों में आए काम नहीं कर सकता था। गुजरात के एक मजदूर जो मुम्बई में इसी यूनिट में काम कर रहे थे जिन्हें मतदान पेटी बनाने का मौका मिला था। ताला लगाने के खर्च के कारण चुनाव आयोग पीछे पड़ने की तैयारी में था। तब मूल गुजराती ओर महाराष्ट्र में कामर्थे पहुंचे नाथालाल पंचाल ने एक पेटी की डिजाइन बनाई। इस पेटी में 2

उत्तराखंड LBSANa ओर सोनियाजी

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 उत्तराखंड कुदरती संसाधन वाला राज्य। भौगोलिक रूप से देखा जाए तो दिक्कतों के साथ लोग खुशी से जी रहे हैं। आज भी यहाँ लोग पहाड़ो पे रहते हैं। मसुरी स्थित लालबहादुर शात्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर में 3 दिन के लिए आना हुआ। भारतके नव नियुक्त IAS ऑफिसर के साथ यहाँ संवाद और गोष्टी करने का अवसर प्राप्त हुआ। How is The josh.... हमारे नावचार के बारे में सुना और अपने विचार रखे। 26 अप्रैल को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिबेन्द्रसिंह रावत को मिलनेका मौका मिला। हमे था कि सिर्फ मुख्यमंत्री महोदय मिलेंगे। मगर वहाँ तो शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी उपस्थित थे। उन्हों ने अपनी बातें ओर समस्या रखी। बहोत अच्छा लगा जब एक मुख्यमंत्री 2 घंटे तक अपने राज्यो के भिन्न भिन्न सवाल ओर समस्या के लिए इनोवेटर से चर्चा विमर्श कर रहे हैं। डॉ. अनिल गुप्ता जी की अगुवाई में हमे उनके साथ बात करने की ओर मेरे भाषा शिक्षा के नवाचार को प्रस्तुत करनेका मौका मिला। सोनिया सूर्यवंशी जो कि एक शक्ति हैं। कुछ खास हैं।हम ने IIM में साथ काम किया हैं। आज उन्हें यहां काम करते देखा। वाह सोनिया जी....भाषा या शिक्

માવતર માટે જ...

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એકવાર ઘરનાં મુખ્ય વ્યકિતએ સૌને બોલાવી એકઠા કર્યા. ભેગા કર્યા એટલે કહે:" અહીં અભરાઇ પર ચકલીનું બચ્ચુ કાલ સાંજ સુધી મેં જીવતુ જોયુ અને આજે મરેલુ છે. કેમ ? " સૌ વિચારમાં પડી ગયા. કોઇએ એવુ કાંઇ કર્યું નહોતું .છેવટે રહસ્ય બહાર આવ્યું. નાની દીદીએ કહયું કે બચ્ચુ ઇંડામાંથી બહાર નીકળવા પાંખો હલાવી કોશિશ કરતું હતું. મે ઇંડુ તોડી બહાર કાઢયું. વડીલ કહે: 'તો આ જ તેનાં મોતનું કારણ.' બચ્ચાને પાંખો ફફડાવવા દેવું પડે, જેથી તેના શરીરમાંથી પ્રવાહી ઝરે અને તે હલકું થાય અને પાંખો મજબુતાઇ પકડશે અને કોચલામાંથી બહાર નીકળી તે ઊડી શકશે. તમે મદદ કરી એટલે પાંખો ફફડાવ્યા વગરનું અપરીપકવ બચ્ચુ બહાર આવ્યુ ને મરી ગયું. ઊડી શકવા પાંખો મજબૂત અને શરીર હલકું જરૂરી છે.  કઇંક આવું જ આપણા સૌનુ છે. મોટે ભાગે માબાપ સંતાનોને સંઘર્ષથી દૂર રાખતા હોય છે. સંતાનોને દરેક માબાપ બે વસ્તુ ભેટ આપે. પરિશ્રમ અને સંઘર્ષ. પાંખો ફફડાવવાની તક આપો.  આજે કેટલાક એવું વિચારે છે કે આપણાં સંતાનને સહેજ પણ તકલીફ ન પડવી જોઇએ. યાદ રાખજો, આ વિચાર સંતાન માટે નુકશાનકારક છે. આવું તૈયાર તજનાર પછી કયાંથી શેકેલો પાપડ

अनूठा प्यार...कुंवारी माता...

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महाराष्ट्र के अहमदनगर से हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे. दरअसल यहां रहने वाली एक महिला की शादी को पांच साल से भी ज्यादा वक्त हो गया है लेकिन महिला ने इन पांच सालों में कभी भी अपने पति से शारीरिक संबंध नहीं बनाए हैं. हैरानी वाली बात तो यह है कि बिना सम्बन्ध बनाए ही ये महिला गर्भवती हुई. जी हां… महिला ने पिछले महीने ही एक बेटी को जन्म भी दिया है. सूत्रों की माने तो महिला की उम्र 30 वर्ष है और उनका नाम रेवती है. बता दें रेवती की शादी साल 2013 में हुई थी. उनके पति चिन्मय से उनकी मुलाकात ऑनलाइन हुई थी, और उस समय वह अमेरिका में थे. शादी करने के बाद दोनों ही भारत से अमेरिका रहने चले गए थे. वहां शादी की पहली रात ही रेवती ने अपने पति को अपनी स्थिति के बारे में बता दिया. रेवती के पति को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी. आपको बता दें रेवती वैजिनिज्म्स नाम की एक मेडिकल कंडीशन से जूझ रही हैं. इस कंडीशन में अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बना पाना उनके लिए लगभग नामुमकिन है. शादी के बाद रेवती ने डॉक्टरों को दिखाया और फिर उन्हें इस बारे में पता चला

बर्ड फिडर में नवाचार

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हरे रंग की प्लेट इनोवेशन क्या हैं। इनोवेशन कैसे होते हैं। मुजे अगर कुछ सोचना हैं तो किस ओर सोचु? आए और ऐसे अनेक सवाल होते हैं। ऐसे ही सवालों के लिए एक बात यहाँ में रखता हूँ। संस्थान का नाम: युवा ग्रीन फाउंडेशन, खरसदा : महेसाणा संस्थान का नाम: कावेरी दे केर स्कूल, महेसाणा। आप कहेंगे एक स्कूल और एक फाउंडेशन में क्या नवाचार हैं। बात ये हैं कि इन लोगोने पिछले साल 40.000 बर्ड फीडर दिए थे। उनकी लागत 38 रुपया थी,मगर वो सबको फ्री में दे रहे थे। अगर परिणाम लक्षी कार्यकर के लिए अगर कहे तो वो किये गए काम को पीछे मुड़कर देखते हैं। युवाग्रीन फाउंडेशन के सहयोगी एवं मार्गदर्शक श्री के.वी.पटेल ने इसे देखा। उनके लिए पिछले वर्ष के काम का परिणाम ओर गलतियां देखनेका यह समय था।उन्होंने देखा कि प्लास्टिक से बने पिछले साल का बर्ड फीडर थे वो 20%से ज्यादा लोगो के पास नहीं थे। वो टूट चुके थे या  कुडे के समानमें थे। अब सवाल ये था कि प्लास्टिक के इस्तेमाल ओर डिजाइन के कारण अगर उसका उपयोग नहीं हो रहा हैं तो वो सिर्फ प्लास्टिक हैं।प्लास्टिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हैं। अगर ये पूरा प्लास्टिक स

आज मेने खुद से बात की...

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आज मेने दोपहर खुद से बात की। मेने माना कि खुद को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना मुजे  तनावमुक्त जीवन देता है। आप के काम के लिए आप को लोग याद करेंगे,आप की उम्र के लिए या ख़ूबसूरति के लिए नहीं। अगर आप खुद अकेले इतना सब कर पाए हो तो जो बाकी हैं, तुम खुद ही कर लोगे। किसी के ऊपर निर्भर न रहो। आप में बहोत लोग विश्वास कर चुके हैं, तुम खुद पे यकीन रखो। मेने खुदसे कहा उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है, उसका आनंद लेने के बजाय दूसरी अड़चन को मुजे नहीं छूना हैं। बच्चों की तरह अब में खिलखिलाउंगा, अच्छा माहौल रखूंगा। थोड़ी देर, शायद पांच मिनिट में शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारते हुए बोला 'अब मेरा भी कुछ करूँ'।  कोई भी क्रीम मुजे गोरा नहीं बनाती, कोई शैम्पू बाल झड़ने से नहीं रोकता, मेरे बाल नहीं जड़ते हैं मगर मुजे मालूम हैं कि कोई तेल बाल नहीं उगाता,  कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नहीं देता। जो हैं वो वैसेही रहेगा,मुजे भी बदलना जरूरी नहीं हैं। जय गणेश... जो होता हैं। ये सब कुदरती होता है।  आज जो हुआ अच्छा हुआ। मेने नई सोचके साथ मेरे नए घर में प्रवेश कि

होना चाहिए....

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होना चाहिए एक साथी ऐसा भी ज़िन्दगी मे, जो अलग हो दायरों से सामाजिक रिवाज़ों से। बांट सके हर वख्त जिससे अपना अंतर्मन, ये ख़्याल ही न आये की वो सखी है या सखा। जो समझे आपको आपकी ही तरह, मिलकर जिससे लगे जैसे हो गयी हो। " ख़ुद से ही ख़ुद की मुलाकात"

दशरथ मांझी सलाम...सलाम...

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दशरथ मांझी एक साहसी या बॉडी बिल्डर नहीं थे। वह भारत में एक मजदूर थे। मांझी की पत्नी को चिकित्सा सुविधा की कमी के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी क्योंकि निकटतम अस्पताल गाँव से 70 किमी दूर था। गांव और शहर के बीच एक पहाड़ था जिसकी वजह से लोगों को घूमकर जाना पड़ता था। इस हादसे के बाद मांझी नहीं चाहते थे कि कोई अन्य व्यक्ति भी इसी तरह के दुर्भाग्य का शिकार हो, इसलिए, उसने पहाड़ के बीच एक मार्ग बनाया, जो 9.1 मीटर चौड़ा, 7.6 मीटर गहरा और 110 मीटर लंबा था। मांझी ने ऐसा करने के लिए लगभग 22 वर्षों तक प्रत्येक दिन और रात काम किया और गया क्षेत्र के वजीरगंज और अत्री क्षेत्रों के बीच की दूरी 75 किमी से घटाकर 1 किमी कर दी। ऐसे ही लोग होते हैं, जो अपने विचार को अमल करते समय और कुछ नहीं देखते या किसी की नहीं सुनते।भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सन्मानित किया हैं। सरकुम: मेने जो सोचा हैं, में वो कर रहा हु। जो मेने ख्वाब देखे हैं, इस के लिए में जागता हूं। मेने जो वचन दिए हैं, उसे में निभाता रहा हूँ। क्योकी मेरा मानना हैं कि में जिन के लिए भी जो कुछ करू उस में वो अपने नहीं मेरे नजरिये