स्कुल कैसे हो...



आज कल अब रॉड पे बड़े पोस्टर लगेंगे। हमारी स्कुल में इतना बड़ा केम्पस हैं। हम इंटर नॅशनल स्कुल हैं। हम ये करते है, वो करते हैं। कुछ लोग अपनी स्कुल को अलग दिखाते हैं। परमिशन गुजरात सरकार के नियमो से लेते है और पाठ्यक्रम हर सत्र के बाद बदलते हुए अपने आप को, अपनी स्कुल को अभिनव दिखाने का प्रयत्न करते हैं।

जैसे CBSC:

सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एज्युकेशन। इसका मतलब है कि सेकंडरी स्कूल ही CBSC हो सकती हैं।अगर ऐसा है तो कक्षा 1 से 5 को कोण CBSC कह सकता हैं। मगर पेरेंट्स कुछ नहीं देखते।

जैसे इंटरनॅशनल:

इंटर नॅशनल का सीधा मतलब है आंतर राष्ट्रीय। जो स्कुल अपने आप को इंटर नॅशनल स्कुल कहते है उन की अपने देश को छोड़ियो अपने शहर में भी दूसरी ब्रांच नहीं होती। मगर पेरेंट्स कुछ नहीं देखते।

जैसे जॉय फूल:

एप्रिल फूल जैसा ये शब्द पैरंट्स के लिए शायद यही अर्थ लेकर आता हैं। जहाँ बच्चो को उन की उम्र के अनुसार आनंद मिले ऐसा होना चाहिए। आनंद के साथ वो कुछ जानकारी से अवगत हो। मगर ऐसी स्कुल हो तो कोई बात नहीं, सिर्फ ऐसा नाम लिखकर पैसा लेते हैं। मगर पैरंट्स कुछ नहीं देखते।

जैसे ड्युअल लेंग्वेज:

बच्चा पचपन से दूसरी भाषा से अवगत हैं। उसे लिखने की जरूरत नहीं हैं। जिन बच्चों की मातृभाषा अलग हैं उन्हें भी इस स्कुल में एडमिशन लेते समय ड्युअल लेंग्वेज को प्रचारित किया जाता हैं।गुजरात में एक तरफ जहाँ अंग्रेजी माद्य्यम भी सफल नहीं हुए वहाँ ड्युअल लेगबेज याने दो भाषा में सीखना, ऐसा किसी ने देखा हैं? मगर हम उसे जाहेरात में देखते हैं। मगर पेरन्ट्स कुछ नहीं देखते।

जैसे अभिनव स्कुल:

नवतर आयोजन...
नवतर शैली या प्रकार...
नवतर शब्द या विचार...

इनोवेशन... स्किल...इवेल्यूएशन...एक्सीलेटर लर्निग, पीअर लर्निग के नाम से स्कुल चलते हैं। अगर कोई कहे की हमारे बच्चे इनोबेशन करेंगे या कर पाएंगे। पेरेंट्स खुश।अगर NIF की फिगर को देखा जाय तो 60 से 70000 बच्चो को मिलने के बाद 30 इनोबेटर्स मिलते हैं। क्या कोई ऐसी प्रचार या नाम लिखने वाली स्कुल में इतने बच्चे पढ़ते है? अगर हा, तो फिर से सवाल तो ये है कि 30 बच्चे पसंद होते हैं।NIF की स्थापना और उस के चयन के ख़ास टूल्स हैं। तो ऐसे नाम से स्कुल क्यों चलाये हैं। क्या गरीब बच्चों में इनोबेशन के विचार या स्किल नहीं होते? मेने आज तक 500 से अधिक वर्कशॉप बच्चो के साथ किए हैं। अगर हर वर्क शॉप में 50 बचसहे है तो उन 2500 से आज तक 3 बच्चे अपने इनोबेशन दे पाए हैं। ऐसे बच्चे होते है जिन्हें हम वातावरण दे सकते हैं । इस के लिए स्कुल की आवश्यकता नहीं हैं। स्किल याने समजीए की गाना। क्या हर व्यक्ति अच्छा गा पाती हैं? अगर नहीं तो स्किल स्कुल में पढ़ने वाला हर बच्चा गीत गाने में माहिर होना चाहिए।

ऐसी मानसिकता ही हमे खर्च करने पर मजबूर करती हैं। सुनिए ऐसी प्राइवेट स्कूल के सामने सरकारी स्कूल भी हैं।

जैसे NVND:

पंचमहाल में नवा नदिसर प्रायमरी स्कुल। जहाँ स्किल डेवलोपमेन्ट की सुविधा प्रदान होती हैं। भारत में एक अनोखा स्कुल हैं।यहाँ के बच्चे ड्रोन और रॉबर्ट बनाते हैं।

जैसे जूनागढ़ कन्या विद्यालय:

प्राइवेट स्कूल के सामने ये स्कुल आज खड़ा हैं।जो बस की ट्रांसपोर्ट की सुविधा देती हैं। यहाँ बच्चे रियल में जॉय फूल पढ़ते हैं। शिक्षा से जुडी क्वॉलिटी कें लिए उसे गुजरात में जाना जाता हैं।


शांति निकेतन,मोरबी:

एक बात देखो।
स्किल
इनोबेशन
एक्सीलेटर लर्निग


सब एक साथ देखने को मिलेगा। कोई दम्भ या आडंबर नहीं। बीएस, बच्चो की स्कुल और मनोरम्य नजारा। जहाँ प्राइवेट स्कूल को छोड़कर लोग यहाँ एडमिशन लेते हैं।

गमती निशाल:

जहाँ बच्चे सिर्फ अखबार से पढ़ते हैं। स्कुल के सभी बच्चों को पढ़ना लिखना आता है और वो सब news paper से होता हैं। चित्र,मूर्ती निर्माण, पपेट शो,कार्टून, संगीत में सभी बच्चे निपुण हैं। यहां का MR एक बच्चा अमित भांडवा भी ढोलक बजा सकता हैं। स्कुल में बच्चो से ज्यादा पेड़ हैं। रन में 100 से अधिक पेड़ हैं। जो स्किल बच्चो में है उस बजह से ये सम्भव हुआ हैं।

आज सरकारी स्कूल सभी सुविधा से सज्ज हैं। आप भी गलत प्रचार में न आकर नजदीकी सरकारी स्कूल में अपना प्रवेश प्राप्त करने की व्यवस्था करें। क्योंकि...


अधिक मेरिट वाले
अधिक अधिकार के साथ
अधिक सुविधा और सुश्रुषा के लिए सरकारी स्कुल में प्रवेश प्राप्त करें।


(कोई खानगी स्कुल वाले इस ब्लॉग पोस्ट के लिए, डराने या धमाका ने की कोशिश न करे ...)

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सरकारी स्कूल सभी सुविधा से सज्ज हैं। आप भी गलत प्रचार में न आकर नजदीकी सरकारी स्कूल में अपना प्रवेश प्राप्त करने की व्यवस्था करें।

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