कथा कैसे सुने....
कथा तब सुनी कहोजाति है,
जब मनमे बंधी गङ्ढों छूटने लगे।
दृढ़ ता के बगेर का ज्ञान व्यर्थ हैं।बेदारकारी से या आलसमे किया गया श्रवण व्यर्थ हैं।कथा सुनए इस वख्त एकध्यान होना अपेक्षित हैं। अगर एल पथ्थर एल सी गुसाईं से पथ्थर भी। अपना आकर बदल देता हैं।हम तो इंसान हैं। सदगुरु के आशीर्वाफ से यह संभव हैं। लाभूभाई जो की ऐसे विषयो पर उँदान से लिखते हैं। उनका कहना है कि कथा सुनए समय नियम बनाने चाहिए।
जैसे....
#न बोलना या जरोरत होने पर धीरे और कम बोलना।
आसपास खाने पीने की सारी चीजो को लेकर मत बैठना।
प्रभु सरनइन है तब सारो चिंताए पंडाल में छोड़ दो,शांति प्राप्त होगी।
कथाकार कोई भी हो।
आज बाहर है,कल जेल में भी हो सकते हैं।कोई या किसी के बारे में हम मानते नहीं हैं।
कथा में आते जाते समय रास्ते में प्रभु शरण करे और हो पाए तो किसी को अन्न का दान दे।
कथा के पंडाल से कुछ धार्मिक चीजे खरीदकर हमारे स्नेही और साथियो को प्रसाद के रूप में इन्हें दे।
कोई कथा सुनाता है।
कुछ सुनाता हैं।अगर कोई सच्ची बात हैं तो वो घटना हैं।
अगर बात गलत या छुपानी वाली है तो आप पे कोई भरोसा न देखेगा।
अगर हमें 10 बजे मिलना हैं,और मिलने वाला नवाचार की गेम खेलने जाय और आके किछ भी कहे। वो कथा नहीं कहते इसे मूर्ख बनाने के सन्देश से फोटो भेजे और कहानी बनाए उसे जूठी कथा कहते हैं। मगर व्यक्तो की पहचान हो जा सकती हैं। जिस के लिए कोई जूथ बोलता है उसे मालूम होना चाहिए ले उन के सीधे पास रहने वाले,छिनने का अधिकार जिन्हें प्राप्त है,उनकी कथा आप को जॉब छोड़ने पर मजबूर करने पर तुले हैं। अगर यकीन न हो तो छिनने वाले को पूछो। वो करीब है,आप को सही लगने वाला बोलेगा,महर सही अब मेरे हाथ हैं।
शुभमस्तु:
उधार में घी लेकर दान करने वाले,खरीदनार को जल्द उधार पैसे वापस नहीं लड़ सकते।
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