पूंजीवादी VS सनातन शिक्षा व्यवस्था।

Bhavesh pandya deesa teacher record iim

चाणक्य ने कहा था कि व्यर्थ है वो  शिक्षा व्यवस्था जो व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं कर सकती| तो क्या आज कल की शिक्षा व्यवस्था व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रही है? उत्तर है नहीं |
आजकल की शिक्षा व्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के ध्यान में रखकर बनाई है, उदाहरण के लिए सीमेंट पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उत्पादन है और चूना सनातनी अर्थव्यवस्था का उत्पाद है | सीमेंट की कुल आयु अधिक से अधिक 75 वर्ष होती है और सीमेंट में 5 वर्ष में ही दरारे उत्पन्न होने लगती हैं और चूने की अधिकतम आयु 2500 वर्ष और कम से कम 500 वर्ष है | आज भी किसी  मिस्त्री  को अगर किसी दीवार मजबूती के बारे में पूछा जाये तो बह कहता है कि जी बस समझ लो चूने में ईट लगा दी I आज भी हम देखते हैं कि जो पुराने पुल हैं वो आज भी खड़े है जबकि नये दो तीन साल में टूटने लगते हैं | कई लोग कहते हैं कि जी अंग्रजों ने बनाया है इसलिए पुराना मजबूत है और नया भारतियो ने बनाया है इसलिए ख़राब है | मैं कहता हूँ मूर्खो पुराना भारतीय तकनीक है इसलिए मजबूत है और नया अंग्रेजों की तकनीक से बना है इसलिए कमजोर हैं | हद है मानसिक गुलामी की | आपको याद होगा थोड़े वर्ष पहले उत्तराखंड में भयंकार बाढ़ आई थी उसमे अंग्रजो की तकनीक से बनायी सभी इमारतें पुल आदि सब वह गए थे बचा तो केवल सनातन भारतीय तकनीक से बना श्री केदारनाथ जी महारज का मंदिर | यह तो रही मजबूती की बात |
दूसरा चूने से पलस्तर हुई ईमारत को कभी पेंट नहीं करना पडता | लेकिन सीमेंट से बनी ईमारत को पञ्च साल में कम कम एक बार पेंट करना पडता है | सीमेंट की ईमारत को बचाने के लिए भी चूना फेरना पड़ता है |
तीसरा सीमेंट से बनी ईमारत का कार्बन फूटप्रिंट लगभग सारी ईमारत के कुल कार्बन फूट प्रिंट का लगभग 40% होता है | कार्बन फूट प्रिंट मतलब प्रदूषण | इसके मुकाबले चूने का कार्बन फूट प्रिंट शून्य है | चूने से बनी ईमारत कोई प्रदूषण उत्पन्न नहीं करती लेकिन सीमेंट से बनी ईमारत बहुत प्रदूषण उत्पन्न करती है | सीमेंट के घरों में रहने से सांस सम्बन्धी रोग हो सकते है क्योकि सीमेंट कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसें छोड़ता रहता | लेकिन चूने से बनी ईमारत कोई कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसें नहीं छोडती इसलिए चूने से बनी ईमारत रहने के लिए सर्वोतम है |
चौथा पानी स्टोर करने के लिए सबसे गन्दी चीज़ है सीमेंट और प्लास्टिक से बनी टंकी | और हमारे घरों में आजकल पानी कहाँ स्टोर होता है तो उसका जबाब है सीमेंट और प्लास्टिक की टंकियो में | पानी को स्टोर करने के लिए चूने से बनी टंकी सर्वोतम है | क्योकि चूना पानी में कैल्शियम छोड़ता रहता है इसलिए हडियाँ कमजोर नहीं होती |
पांचवां चूने से बनी ईमारत सीमेंट से बनी ईमारत से गर्मीओं  में लगभग 9% ठंडी रहती है और सर्दीयों  में सीमेंट से कम ठंडी होती है |
अंत में अब यह प्रश्न उठता है अगर चूने के इतने अधिक लाभ हैं तो हम चूने से घर क्यों नहीं बनाते तो इसका उत्तर है हमारी आज कल की पूंजीवादी शिक्षा व्यवस्था | क्योकि चूने को बनाने के लिए सीमेंट की तरह ना तो कोई बहुत बड़ी मिल चाहिए , ना जमीन , ना बहुत बड़ी मशीनरी चाहिए , ना ही कोई बड़ी तकनीक , बस चूने और मिटटी आदि के मिश्रण को पीसने के लिए केवल बैल या इंजन चालित चक्की चाहिए | जो कोई भी गरीब आदमी किसी भी छोटे गाँव या शहर के बाहर लगा सकता है | इसलिए चूना किसी भी सिविल इंजीनियरिंग संस्थान में पढाया नहीं जाता | आप आपने किसी सिविल इंजिनियर मित्र से पूछक़र देखना कि क्या तुमने कभी सिविल इंजिनियर के कोर्स में चूना पढ़ा है तो वो बोलेगा नहीं | अब आप पुछ्गें क्यों  नहीं पढाया जाता तो इसका उत्तर है क्योकि सीमेंट से देश के सारे संसाधन कुछ चंद लोगो जैसे ACC ,BIRLA , आदि के पास इक्कठे हो जाते है इसलिए नहीं पढाया जाता | चूने से देश के संसाधन सब लोगो में सामान रूप से बंट जाते हैं इसलिए आजकल के पूंजीवादी शिक्षा व्यवस्था में चूने का कोई स्थान नहीं है | सीमेंट में लाख कमीयां हो लेकिन चूना पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मॉडल में फिट नहीं बैठता | जिसका उद्देश्य  धन को केवल कुछ लोगो तक सीमित  कर देना है किसी का भला नहीं कर सकता | आज कल की पूंजीवादी शिक्षा व्यवस्था भी इसी पूंजीवादी ढांचे को आगे बढ़ाने लगी हुई है जिसमे अगर आप इस प्रश्न ``कि भवन निर्माण का सबसे अच्छा मटेरियल कौन सा है `` का उत्तर चूना देते हैं तो आप परीक्षा में फ़ैल हो जातें हैं और आप इंजिनियर नहीं बन सकते |

जय हिंद
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बदलने से पहले हमें हमारे कमाने के रास्ते बदलने हैं। क्या सिर्फ डॉक्टर और इजनेर ही पैसा कमा सकते हैं? इस सोच को बदल ने के वास्ते हमे कुछ करना चाहिए।

Comments

ખરેખર સાચી વાત કહી.ગુરુકુલની પરંપરામાં જેટલું ચારિત્ર્ય ઘડતર થતું હતું.તે આજનું શિક્ષણ નથી.આપતું.ભૌતિક વિકાસની હરણફાળ સમાજને ડુબાડશે
-રાકેશ ઠાકર હેડટીચર કાલોલકુમાર

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