ऐसे विचार...कभी नहीं...



कुछ ऐसा जो सिर्फ सुनना हैं।
कुछ सवाल ओर कुछ निर्णय हमे सुनने होते हैं। कुछ को समज सकते हैं, मगर कुछ को समजना शायद संभव न हो।

जब किसी से अपेक्षा होती हैं, सीधा मतलब ये होगा की उपेक्षा भी अवश्य होगी। आप की किसी से अपेक्षा हैं तो आप को उपेक्षा भी सहनी होगी। हम आशा रख सकते हैं। उसे कभी छोड़ना नहीं चाहिए, क्यो की चमत्कार होते ही रहते है। जिस में हमे यकीन करना हैं। 

मेरे दोस्त...

दोस्त, मित्र के नाम से साथ रहने वाले, जो अपने गिरेबान को नहीं देखते हैं। ऐसे लोगो के साथ क्या करना चाहिए जो अपने आप को अलग मानकर किसी को अलग करनेपे तुले होते हैं। ऐसे लोगो को..... अलग से न्याय देना जरूरी हैं। जब तक उन्हें उनके कर्म की बजह से हम कुछ नहीं कहेंगे, वो चमत्कार करते रहेंगे। ऐसे समय हमें आशा रखनी हैं कि उनके चमत्कारों को हम अच्छे से चमकाए।


सरकुम:
यह वख्त भी गुजर जाएगा...!
मित्रो की सजा का एलान होगा...!
तभी गब्बर को खुद होश आएगा...।

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