।। भुनसारे चिरैया काय बोली ।।



मेरे दोस्त,
बुजुर्ग दोस्त।
वीरेंद्र दुबे जी।
Ignus. org के सक्रिय स्थापक सदस्य और साथी।
हमने कई साल साथमें काम किया, आज भी हम उनसे संपर्क में हैं। आज भी काम करते हैं,उनसे सीखते हैं। दुबे जी की लेखन शैली आप को पसंद आएगी।

 चिरैया काय बोली

बरसों बाद रोज की आहट से हटकर
बचपन के रोज की तरह
गौरैया की चहचहाहट ने नींद खोली
सपने से जागने से वे अनमने क्षण
सहसा आ धमके आमने सामने ।।

कहाँ चली गयीं सबकी सब एक एककर
निगल गयीं तुमको भी उन्नति
हरियाली खुशहाली कहती कपटी कवायतें
आज अचानक कहाँ से आ चहकीं ?
आ गयीं अपने पुराने घर नहीं रहा घरौंदा पर ।।

खूब खूब चमकीले पानीदार दानों भर
तुम्हारा जी भर सुस्वागतम ,
तुम्हारे साथ साथ कोहरे में आंख मलते
चली आने वाली आने वाली ठिठुरती सुबह का भी ।।

सरकुम:

चिड़िया छोटी होती हैं।
नाजुक ओर प्यारी होती हैं।
मेरी एक चिड़िया हैं, देश परदेश गुमती हैं।
देशमें प्यार जताती हैं, विदेश में डाटती हैं।
आप मेरे लिए सदैव के लिए ming you हैं।

गलती किये महीनों हुए, अबतो सुधर चुके हैं। मेने काम और जीवन को आगे डेवेलोप करनेका प्लान किया हैं। साथ जुड़ के चलना तय हुआ हैं। उसे देखे। गलत सोच में समय बिगड़ता हैं, काम रुकता हैं। जैसे आज सब अच्छा था। फरभी नींद न आई।



तेरे साथ, तेरे सहारे।
                

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