अब ये नहीं दिखते...

पैसा फेंको तमाशा देखो।
दिल्ही का कुतुब मीनार देखो...
आप ने ये गाना सुना होगा,ये उस जमाने की बात हैं जब हमारे पास मनोरंजन के कुछ साधन नहीं थे। उस वख्त ये सब गाँव गाँव गुमते थे और एक पैसा 4 पैसा से 50 पैसे तक दिखाया जाता था।
आज तो ऐसी चीजें हमे मूजियम में देखने को मिलती हैं। ऐसी चीजें आज लुप्त हो रही हैं जैसे इंसानो में से पूंछ लुप्त हो गई हो। ये ऐसी कला थी जिस को लोग उस वख्त काम आती थी जब बारीश न होती हो और कोई काम न हो। इस खेल को देखने के लिए पैसा और अनाज या सब्जी के बदले भी ये फ़िल्म पट्टी देखने को मिलती थी।
आज तो टेक्नोलोजी के कारण ऐसी बहोत सारी कलाए मृतप्राय हैं। और इसे बचने की जिम्मेदारी के
हमे ही निभानी हैं।

सरकुम:
जो हैं उसे याद करेंगे।
जो कहा गया उसे भी याद रखेंगे।
कुछ भी हो,जैसा भी हो,नया सवेरा लाएंगे।

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