नजर ओर नजरिया...


प्यार करते हैं हम तुम्हे इतना,
दो आंखे तो क्या, दो जहां में समाए न इतना।


कुछ दिन ऐसे होते हैं।
जहां हर तरफ से खुशिया सामने से आती हैं।
कुछ वख्त ऐसा भी आता हैं कि खुशिया तो दूर खाना पीना भी हराम हो जाता हैं। ऐसा इस किए होता हैं कि हम अधिक आस लगाए बैठे होते हैं। कुछ बाते ऐसी होती हैं जिसमे आस से ज्यादा विश्वास होता हैं। विश्वास अगर सच्चाई के साथ हैं तो ठीक हैं। मगर अधूरी जानकारी के साथ आप ने विश्वास को जोड़ा हैं तो आप को इसका जवाब समय देगा।

समय आने पर हमें हकीकत का पता चलता हैं,ओर तब जाकर बहोत देर हो चुकी होती हैं। मगर उसका अफसोस करने से कोई फायदा नहीं हैं। जब संभाल लेने की बात थी अपने आप जो न संभाल पाए अब पछताए क्या होवत हैं जब चिड़िया चूब गई खेत। 
नजर ओर नजरिये का सवाल हैं।यहां किसी लयर को समझने वाले ने ताश के पत्तो में से love लिख दिया हैं। अगर कुछ सही हैं तो उसे सराहो ओर अगर गलत हैं तो उसमें सुधार करो। छोड़ने ओर तोड़ने के अलावा और भी जीबन में लक्ष होने चाहिए।

सरकुम:

जो कुछ था, तेरा न था।
अब जो कुछ हैं सिर्फ तेरा हैं।
रहमो करम की बात यही,
तू साथ में होते तेरा संगाथ नहीं।

#अशरफ छोकु

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