निराशा और बिश्वास

लक्ष्य के प्रति समर्पित इंसान के लिए विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती। अगर एक दिन में आप सौ बार गिरते हैं तो इसका मतलब हुआ कि आपको सौ सबक मिल गए। अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाएं, तो आपका दिमाग भी उसी तरह सुनियोजित हो जाएगा। जब आपका दिमाग सुनियोजित रहेगा तो आपकी भावनाएं भी उसी के अनुसार रहेंगी, क्योंकि जैसी आपकी सोच होगी, वैसी ही आपकी भावनाएं होंगी। एक बार जब आपकी सोच और आपकी भावनाएं सुनियोजित हो जाएंगी, आपकी ऊर्जा की दिशा भी वही होगी और फिर आपका शरीर भी एक लय में आ जाएगा। जब ये चारों एक ही दिशा में बढ़े तो लक्ष्य हासिल करने की आपकी क्षमता गजब की होगी। फिर कई मायनों में आप अपने भाग्य के रचयिता होंगे।
विफलताओं को याद रखने के कोई कारण नहीं हैं। अगर सफल नही रहे तो कुछ कारण होगा। में कारण को गलती कहता हूं। ऐसी गलती जो शायद आप को मालूम न हो। शायद पहले की गलती किसी के ध्यान में आई हो और आज भुगत रहे हो। ऐसा भी हो सकता हैं । होने को तो बहोत कुछ हैं। मगर अंत में विफलता मिलती हैं। ऐसी विफलता को विफलता नहीं कहते उसे गलतियो का परिणाम कहते हैं। जिस भी गलती से आप लक्ष्य प्राप्य नहीं कर पाए तो हमे लक्ष नहीं तरीके बदलने चाहिए। लक्ष बदलने से कुछ नहीं होगा। लक्ष तक पहुंचने में पहुंचना असम्भव तब लगता हैं जब आप विफलताओं का सामना करते हैं। जैसे एक के पीछे एक विफलता आती हैं वैसे ही एक के पीछे एक सफलता भी आएगी। इंतजार करें, 'यह बख्त भी गुजर जाएगा'

सरकुम:
जब मजा नहीं आता,  मिज़ाज बदल देता हूँ।
आवाज बदलता भले, नहीं आंखें  बदलता हूँ।
मेरी कस्ती नहीं डरती किसी के यूं टकराने से,
में दिशा नहीं, बढ़ने को तो कस्ती बदल देता हूँ।

(किसी गुजराती पंक्ति को मैने हिंदी में ढाला हैं।आवाज बदलता हु मतलब गुस्सा या नफरत आवाज से दिखाता हु, आंखों में प्रेम वही रखता हूं।डरता नही कोई अड़चनों से,सोच हैं वही के लिए दिशा नहीं, कस्ती बदल देता हूँ)
मुजे यकीन हैं।


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