अंतिम दिबस तब होगा...


गुजराती फ़िल्म थी।
पोस्टर में लिखा हैं उसे हिंदी में अंतिम दिवस कहते हैं।कई बार हम सोचते हैं कि मेरे इस काम के लिए ये आखरी दिबस हैं। मगर आप के लिए ओर एक दिन का इंतजार करने का लिखा होता हैं। अगर सही में हमारे कहे अनुसार अंतिम दिबस होता तो हमारी ओर से होने वाले बहोत सारे काम  आज न हुए होते।

किसी ने खूब कहा हैं कि चलो आज ही खुश हो लेते हैं,
क्या मालूम कल गम के लिए भी हमारे पास जीवन न हो।

कृष्ण ने कहा हैं,
जो करते हो,वो भरते भी हो।
मगर सबसे बड़ा सवाल भी ये होता हैं कि ज्यादातर हमे मालूम ही नहीं होता कि ये भरपाई हम किस बात की कर रहे हैं। ऐसे समय हम चाहते हैं कि आज का ये दिन हमारे दुख का अंतिम दिवस हो।
#छेल्लो दिवस

सरकुम:
अंतिम दिवस तब होगा,
जब मेरा होंसला टूटेगा।
जब मेरा इरादा छूटेगा।
न कोई मुजे समजायेगा,
न मुजे कोई  बतलायेगा।
वो अंतिम दिन मेरा होगा।

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