कृष्ण और जीवन



मुजे हिन्दू होने पर गर्व हैं।
मेरे जीवन को में कृष्ण के करीब देखता ओर समजता हूं। भारतीय संस्कृति के महानायक श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के जितने रंग हैं उतने और किसी के भी नहीं हैं, कभी माखन चुराता नटखट बालक, तो कभी प्रेम में आकंठ डूबा हुआ प्रेमी जो दुनिया को प्रेम का पाठ पठाता है।

प्रेम को शक से नहीं समर्पण से जितने की सिख कृष्ण देते हैं। अगर कोई हमारी बात मानता हैं तो वो आपका प्रेमी हैं। उसे प्रेम अर्पण करना हमारी जिम्मेदारी हैं।

जरूरत पड़ने पर प्रेयसी की एक पुकार पर सबके विरूद्ध जाकर,अपनो को दूर करकर कृष्ण उसे भगा भी ले जाते है। कभी बांसुरी की तान में सबको मोह लेता है, संगीत से संस्कार तक कि बात कृष्ण हमे समजाते हैं। तो कभी सच्चे सारथी के रूप में गीता का उपदेश देकर दुनिया को नैतिकता और अनैतिकता की शिक्षा देता है। अपने मन की बात सुनाते समय सामने वाला क्या अर्थ निकलेगा वो सामने वाले को ही तय करने दो, जो सच होगा वो ही कहिए ये में नहीं कृष्ण ने कहा था।

ना जाने कितने रंग कृष्ण के व्यक्तित्व में समाए हैं। कृष्ण की हर लीला, हर बात में जीवन का सार छुपा है। कृष्ण के जीवन की हर घटना में एक सीख छुपी है। जो आगे का देख पाते हैं, उनके पास अभी के हालात का विवरण करवाना याने दुःख खड़े करना। संपूर्ण पुरुष माने जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन को देखने का एक नया नजरिया अपने भक्तों को दिया। 

कृष्ण की जीवन के लिए महत्व पूर्ण पांच शिक्षाओं को अगर हम आत्मसात कर लें तो परमात्मा के निकट पहुंच सकेंगे.

1. निष्काम स्वधर्माचरणम् : 

बिना फल की इच्छा किए या उस कार्य की प्रकृति पर सोच-विचार किए अपना कर्म करते जाओ। जुड़े हैं तो जुड़े रहेंगे। आगे क्या फल मिलेगा वो अलग बात हैं। कृष्ण के इस काम के लिए कह सकते हैं 'जो हैं उसे देखो, जो होगा उसे देख लेंगे।'

2.अद्वैत भावना सहित भक्ति : 

परमात्मा के प्रति अद्वैत भावना से स्वयं को उस परम शक्ति के हाथों समर्पित कर दो। उसी की भक्ति करो। जिस पे भरोसा रखो उसे निभाओ। अगर आपने किसी को परम् शक्ति मानकर उसे सबकुछ अर्पण किया हैं तो उसके प्रति शंका न करें। कृष्ण के इस उपदेश के लिए हमे ये मानना हैं कि 'कोई शक्ति हैं जो हमे बचाते आ रही हैं,अधर्मियों ने तो कब से शस्त्र सजा रखे हैं। कुछ हैं जो हमे साथ देता हैं, ओर उस भरोसे को मत तोड़ो,उसे समर्पित हो जाओ।

3.ब्रह्म भावना द्वारा सम दृष्टि : 

सारे संसार को समान दृष्टि से देखो। सदैव ध्यान रखो कि संसार में एक सर्वव्यापी ब्रह्म है जो सर्वोच्च शक्ति है। जो आप का विरोध कर रहे हैं वो अक्षम होने का पुरावा दे रहे हैं। हमे बर्बाद करने के सोच वाले लोगो को उनके हाल पे छोड़ दो। वो बेहाल होने पर हैं। उनकी बर्बादी के मौकों को खोजने के लिए हम आबाद होना क्यो छोड़े?हमे किसीभी हाल में आगे जाना हैं।

4.इंद्रीय निग्रहम् और योग साधना : 

इंद्रियों को अपने साधाना पर केंद्रित करो। सभी प्रकार की माया से स्वयं को मुक्त करने और अपनी इंद्रियों का विकास करने का निरंतर प्रयास करते रहो। बिचार,आचार ओर गुस्सा इंद्रियों से ही हैं। अपनो पे गुस्सा याने थोड़ी देर के लिए सामने से खड़ा किया गया दुःख।और परायों पे गुस्से का तो कोई मतलब ही नहीं। क्यो किसी की बातों पे हम अपना जीवन बर्बाद करें।

5.शरणगति : 

जिन चीजों को तुम अपना कहते हो उसे उस दिव्य शक्ति को समर्पित कर दो। वो दिव्य शक्ति यानी बिश्वास ओर विश्वसनीयता। और उस समर्पण को सार्थक बनाओ, जिस के बजह से हम जीवन में आगे जाना तय कर चुके हैं।

आज आप और हम अर्जुन बन कर, अनवरत हर रोज अपने जीवन की महाभारत लड़ रहे हैं। हमारे इस शरीर रूपी रथ में पांच घोड़े जो है वो हमारी पांच ज्ञानेन्द्रिय याने आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा है। यह इन्द्रियां हर वक्त रूप, रस, श्रवन, गंध और स्पर्श में फंस कर भटकने को ललायित रहती है। 

ऐसे में हमारी बुद्धि ही हमारी सारथी का काम करती है और मन के वशीभूत हुए इन चंचल घोड़ों को सही मार्ग पर प्रेरित करने के प्रयास में लगी रहती है। आज हर रोज की भागदौड़ में त्रस्त हुआ मनुष्य जब खुद को असहाय और असहज पाता है तो ऐसे में, श्रीमद्भगवद्गीता एक या ग्रन्थ न होकर मनुष्य को सफलतापूर्वक जीवन जीने की कला सिखाने वाली संजीवनी का काम करती है। 

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कृष्ण को मालूम था।
कृष्ण दार्शनिक थे और भविष्य देख सकते थे। ओर समय आने का इंतजार करवाते थे।

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