ताना समुदाय ओर देश भक्ति

गांधीजी ने स्वदेशी सामग्री का आग्रह रखा था। वो खाड़ी के वस्त्र    की बात करते थे।किसी को रोजी मिलती ओर किसीको सस्ता कपड़ा। आज के दिन 1947 को देश आज़ाद हुआ।  खादी के वस्त्र तो तब से जैसे कम होने लगे।आज जो खादी मिलती हैं वो महंगी हैं।अक्टूबर महीने में खादी थोड़ी सस्ती होती है तब जाके हमारे जैसे लोग एक कुर्ता या शर्ट खरीद लेते हैं।
आजनके दिनगर किसी ने खादी के वस्त्रों को सदैव के लिए अपनाएं हैं तो वो हैं, ताना भगत समुदाय के लोग।जो आज भी गांधी टोपी ओर खादी के वस्त्र पहनते हैं।
ताना भगत समुदाय के लोगो के बगैर हम हिंदुस्तान की आज़ादी का इतिहास नहीं लिख सकते हैं।अरे इस समुदाय के लोगो ने आज तक आए प्रथा संभाली हैं।सुबह में वो त्रिरंगे को सलामी देने के बाद ही अपना काम करते हैं।हाला की उनके तिरंगे में अशोक चक्र के बदले रेंटिया दिखता हैं।पहले बिहार और अब ज़ारखण्ड में ये समुदाय रहता हैं।उनका देश प्रेम किसी एक दिन के लिए नहीं मगर कायम के लिए रहता हैं।आज उनके बारे में बात करेंगे।

बात हैं एक महंत की।
उनका नाम जतरा भगत। वो आदिवासी को एक करके उन की सामाजिक और व्यक्तिगत बुराई को निकाल के उनको एक करना चाहते थे। उन्हों ने बली वहाडने का,मदिरणपण ओर सामाजिक अन्यं कुरिवाजो के सामने आवाज उठाई।सबको एक किया। उस जमाने में उन्होंने 26000 से अधिक लोगो का एक समुदाय बनाया। जतरा भगत के इस समुदाय में जुड़ने वालो को ताना भगत समुदाय के लोग कहे जाने लगे। उन्हों ने अंग्रेज सरकार को किसी भी बात का कर देने से इनकार किया। पूरे समुदाय ने इस बात को पकड़ा और कर न देनेका तय किया। ताना भगत समुदाय के लोग अंग्रेजो को दुश्मन लगने लगे। जतरा भगत ओर अन्य आंदोलन करने वालो को पकड़ा। अंग्रेजो को लगा कि ये ताना समुदाय की बाते उन्हें परेशान कर रही थी। उन्हें जेल में डालदिया गया। जेल से छूटते ही उनका आकस्मिक अवसान हुआ।उनके बाद वाले कार्यकरो ने उस मुहिम को आगे बढ़ाया। ये उस वख्त की बात हैं जब गांधीजी देश नेता के तौर पर उभर रहे थे। ताना भगत समुदाय सीधा बापु से जुड़ गए। उस जमाने में उन्हों ने बापु को 400 रुपये की सहाय राशि देश को आज़ाद करने के लिए इकट्ठा कीओर बापु तक पहुंचाई।आज चारसौ का महत्व नहीं हैं। में आजादी के पहले की बात करता हूँ। 1922 में गया स्थित कोंग्रेस अधिवेशन में बड़ी संख्या में ताना समुदाय के लोग आए।
इस समुदाय के लोगो के पास जमीन थी।देश की आजदिनके लिए वो जेल में गए।कुछ जमीन छूटने के लिए बेचनी पडी। कुछ जमीन अंग्रेजो ने लेली। 1948 में गांधीजी के आग्रह से भारत सरकार ने अंग्रेजो के द्वारा 725 ताना समुदाय के लोगो की  खालसा की हुई 4500 एकड जमीन वापस करने के लिए संसद में ताना भगत रैयत लेंड रेस्टोरेशन एक्ट पारित किया। गांधीजी ने उन्हें वचन दिया था कि आप को आपकी जमीन वापस मिल जाएगी।  गांधी बापु का अवसान हुआ।आज तक एक भी ताना समुदाय के लोगो को उनकी जमीन 72 साल के बाद भी नहीं मिल पाई हैं।और फिर भी वो रोज त्रिरंगे को वंदन करके ही अपना काम शुरू करते हैं।


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वैसे तो उस प्रदेश में  बिहार में 125 परिवारों को 1000 एकड़ जमीन वापस दी थी।कृष्णसिंह नाम के बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री को छोड़कर कोई आज बाकी की 3500 एकड़ जमीन के लिए कुछ नहीं बोला।

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