अपेक्षा ओर उपेक्षा
प्रसन्न रहने के लिए हम बहोत कुछ करते हैं। प्रसन्न रहना किसे पसंद नहीं हैं।मगर कुछ वख्त ऐसा होता हैं कि प्रसन्न ता के अवसर पर भी हम प्रसन्न नहीं रह पाते।
इस के लिए दो बातें ही तय हैं।
अपेक्षा ओर उपेक्षा।
खुशी के मौके पर अगर हम खुश नहीं रह पाते तो उसका मतलब हैं हमारी अपेक्षा अधिक हैं,या तो हमे उपेक्षित होने का अहसास हैं।जो भी हैं भगत इस से हमारी खुशी कम हो जाती हैं। खुशी और प्रसन्नता दो अलग बाते हैं।अगर कोई हमारी उपेक्षा नहीं कर रहा हैं और हमे ऐसा लगे तो इसका मतलब आप मानसिक रूप से थके हैं या आपको आराम की जरूरत हैं।कोई हमारी उपेक्षा करे उसमें गलती हमारी हैं।सीधा मतलब ये हैं कि हो सकता हैं हमारी अपेक्षा ज्यादा हो।प्रसन्न रहने के लिए जब भी कोई सवाल या समस्या आये तो उसमें सही गलत क्या हैं वो नहीं मगर हम उस समस्या में होते तो क्या करते।बस,यही विचार आप को प्रसन्नता के करीब ले जाएगा।
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मुजे खुश रहना हैं।
मेरी खुशी सिर्फ मेरे हाथों में हैं।
मुजे खुश रहना है,क्यो की मेरे पीछे बहोत जिम्मेदारी हैं।
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