प्रात : वंदन ...


जो जिसको चाहे
वो उसे कब हासिल होती है..!

जिम्मेदारियां अक्सर..
ख्वाहिशों की कातिल होती हैं..!


जिम्मेदारी एक ऐसा शब्द हैं जो सुनने में अच्छा हैं मगर...
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी बात को जता नहीं सकते मगर वो उसमें खरे उतरते हैं।कुछ लोग खास होते हैं।कुछ तो खासम खास होते हैं।कुछ इस लिए याद रहते हैं,की उन्हें हम भूल नहीं सकते हैं।कुछ इस लिए भुलाने पड़ते हैं कि वो भूलना चाहते हैं।कुछ लोगो को उनकी जिम्मेदारी का अहसास नहीं होता हैं।उन्हें हर वख्त बस... अपनी ही तस्वीर दिखती हैं।शायद वो जिम्मेदारी का अर्थ नहीं समझते होंगे।

किसी को मिलना,उसे समझना और समजाना सरल नहीं हैं।मगर कई बार एक शब्द सब कुछ बिगाड़ देता हैं,वो शब्द हैं 'जिम्मेदारी'।
मेरी क्या जिम्मेदारी?
कोई मेरी जिम्मेदारी नहीं ले रहा हैं।
मुजे कुछ होगा तो मेरे पीछे कोंन हैं।
तुम अपनी जिम्मेदारी निभाना भूल चुके हो।
मेरी जिम्मेदारी लेने के बाद तुम कितनी जिम्मेदारी निभाओगे?
में सब कुछ छोड़ दु मगर मेरी जिम्मेदारी आप कैसे निभाएंगे।


जिम्मेदारी से जुड़े कुछ और भी सवाल हो सकते हैं।प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी अलग अलग होती हैं।जिम्मेदारी स्वीकारने का विकल्प नहीं है,जिम्मेदारी निभानी भी एक जिम्मेदारी हैं।कुछ जिम्मेदारी ही हमारी ख्वाहिशो को तोड़ देती हैं।

@#@

कुछ जिम्मेदारियां लेनी नही,निभानी होती हैं।एक बाप अपनी बच्ची के लिए क्यो बुरा सोचेगा?पापा की बात मानो...

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