एक जवाब गलत हैं।
हम जो सोचते हैं।वैसा होता नहीं हैं।हमने जो नहीं सोचा हैं शायद हो जाता हैं,या करना पड़ता हैं।ऐसे हालात में हमे क्या करना चाहिए।
बच्चे उसका जवाब हैं।
बच्चो के लिए कोई समस्या नहीं रुकती। अगर बच्चा जिद पे बन आये तो हम उसे रोक नहीं सकते। जब बात खुदकी हो तो खुद को ही जवाब तय करना पड़ता हैं।किसी किताब में बिल्ली को दूध तक पहुंचना था।यहाँ पाठ्यक्रम निर्माण में जुड़े लोगों ने सोचा होगा कि बच्चे की स्किल डेवलोपमेन्ट के लिए ये काम आवश्यक लगा होगा।मगर हुआ कुछ अलग है।
जीवन में समस्या आये तो उसको सोचना ओर समझना चाहिए। हम सृस्टि के साथ जुड़े हैं।नव विचारक बच्चो को खोजने के काम में हम जुड़े हैं। समस्या का कोई समाधान खोजने के लिए बच्चे ही सही जवाब देते हैं। हमारे जैसे पढ़े लिखे लोग किसी की खोज के आधार पर जवाब खोजते हैं। मगर सवाल कितना भी मुश्किल हैं। जवाब जब हमें तय करना हैं तो हमारा ही जवाब माना जाना चाहिए।मुश्किल तब ही होगी जब हमें जो सवाल करेगा उसका जवाब तभी सही कहलायेगा जब तय किया गया जवाब मिलेगा।
समजीए...
सवाल सीधा हैं।
5+3 = ?
यहाँ सवाल करने वाले ने एक ही जवाब की अपेक्षा रखी हैं।जवाब तो ही सही हैं,अगर 8 मीले। सवाल ओर जवाब सही हैं। मगर मेरा मानना हैं कि अगर 8 सीखना ही सिद्धि हैं तो मेरा सवाल होगा(?)+(?)=8 में ऐसा सवाल करूँगा ओर इसके बहोत सारे जवाब होंगे मगर सभी सच हो सकते हैं।
सीखने वाले ने ये कहा कि बिल्ली को दूध तक पहुँचानेका ये भी तरीका हैं। सवाल करने वाले ने तो एक ही जवाब मिलता।जितने लोगो ने सही जवाब कहा होगा उनका उत्तर समान होगा। जैसे 8 जवाब तय हैं। मगर मेने बिल्ली को दूध तक पहुंचाया वो काफी नहीं हैं?
बच्चो की तरह जिद करो।
नियम बदल जाएंगे,जो सन्मान करते हैं,जो प्यार करते हैं वो नियम बदलने को तैयार हैं। हम भी बच्चों से प्यार करते हैं तो हमने भी किताबो में ऐसे नवाचार किये हैं।
सवाल मुश्किल गो सकता हैं।जवाब नहीं।क्यो की सवाल को जवाब चाहिए।जवाब देने के बाद आने वाले सवाल को हम नए तरीके से देख सकते हैं।सवाल सर्वस्व नहीं हैं।सवाल एक हैं।जवाब अनेक हैं।हमें सही ठहरना हैं चाहे जवाब को सही माना जाए या गलत। हमारी समझ हमे बनाए रखनी हैं।
@#@
जीवन एक सवाल हैं।
उसके जवाब हमे नहीं मिलते,जब जवाब मिलते हैं तो देर हो गई होती हैं।मरने के बाद जो हमारे होते हैं वो कहते हैं कि ये जवाब गलत था।
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