छोटी शोधयात्रा: बड़े विचार

हनी बी नेटवर्क।सृष्टि 25 साल से शोधयात्रा के शोधक ऐसी संस्थाए जो शोधयात्रा स्थापक भी कह सकते हैं। हनी बी नवतवर्क के हमारे साथी और हरियाणा शैक्षिक नवाचार के जोईए काम करने वाले श्री दर्शन लाल बवेजा हमारे साथ काम करते हैं।उन्होंने थोड़े विचार अपने तरीके से अमल किये हैं।उन्होंने बड़ी शोध यात्रा के बदले छोटी छोटी शोधयात्रा का आयोजन किया हैं।उन्होंने ऐसा ही एक आयोजन तैयार किया हैं।

उनका कहना हैं कि, हम 
ना जाने कितनी ही बार एक रास्ते पर गुजरते हैं, परन्तु आसपास की वनस्पतियां, जैव-विविधता, और प्रकृतिक व मानवीय गतिविधियाँ नजरअंदाज करते हुए निकल जाते हैं। शोध यात्रा गतिविधि नेचर वाच गतिविधि से थोड़ा भिन्न होती है यहाँ तक भी कहा जा सकता है कि नेचर वाच, क्षेत्र भ्रमण शोध यात्रा की ही एक शाखा है, क्षेत्र भ्रमण शोध यात्रा का दायरा विस्तृत होता है, क्षेत्र भ्रमण शोध यात्रा में विद्यार्थियों द्वारा 4-6 के समूह में एक ख़ास मार्ग का चयन किया गया हैं।
इस मार्ग पर अध्यापक के साथ पैदल या सायकिल पर चलना प्रारम्भ करते हैं, मार्ग श्री दर्शनलाल बावेजा जी रुक-रुक कर विभिन्न गतिविधियों-घटनाओं-परिवर्तनों का अवलोकन करते हुए जाते हैं और उनसे सम्बन्धितों से सवांद भी स्थापित करते हैं । जिस में कृषक को काम करते हुए देख कर यह पूछना न भूलें की वो खेत में क्या काम कर रहे हैं या क्या फसल लगाई है? चरवाहे को संवाद में शामिल करते हुए उस से उसकी भेड़-बकरियों की बाते, बालों का उत्पादन व स्थानीय विविधताओं के बारे में चर्चा करते हैं। पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, कीट-पतंगों, खेत-खलिहानों, फल-फूलों बेल-बुटों, कवक-फफूंदी, बिल-घोंसलों, पैरों के निशानों, अंडें-चूजे, बीज-पत्ते, जंगली फल व पानी के स्रोतों का निरिक्षण-प्रेक्षण करते चलें। अध्यापक से निरंतर संवाद करते प्रश्न पूछते चलें और अपने थैले में बीज, पत्ते, मिटटी, केंचुली, अंडे के खोल, पक्षी के पंख आदि एकत्र करें। एकत्रित सामान व अर्जित अनुभवों को विद्यालय में अन्य सहपाठियों के साथ सांझा कर रहे हैं। 

इसी गतिविधि के मद्देनजर एक  विद्यालय के विद्यार्थी इतेश, अभिषेक, सूर्यकांत, कर्ण और अरुण विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बावेजा के साथ क्षेत्र भ्रमण लघु शोधयात्रा को निकले जहां मार्ग में अरंड के पौधे पर लगे बीजों ने आकर्षित किया तो अरंडी के पत्तों के चिकित्सा हेतु प्रयोग उस पर चर्चा की गयी विज्ञान अध्यापक ने बताया की इसके बीजों से निकलने वाले तेल का प्रयोग साबुन बनाने में किया जाता है जबकि बीजों का प्रयोग भी विभिन्न आयुर्वैदिक दवाइयां बनाने में किया जाता है।

उनके मार्ग में विभिन खरपतवार पौधों का जिक्र किया गया तो बीजों के उड़ कर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाना व पक्षियों द्वारा फल को समेत बीज खाने से अपाचन की स्थिति में उनकी बीट द्वारा सीड स्प्रेडिंग बालकों के लिए नया अनुभव था। जंगली खजूर पर पीपल के पेड़ का उगना उनकी समझ में आ चुका था कि यह पीपल के बीज को ना पचा पाने वाले पक्षियों की करामात के कारण हुआ है। आम के पेड़ की नस्ल और गत वर्षों व इस वर्ष के उत्पादन व गुणवत्ता को मौसम से तुलनात्मक अध्यन से तुरंत निष्कर्ष पर पहुचना कि इस बार वर्षा और आंधी की कमी के कारण फल झड़ा नहीं जिस कारण पेड़ पर फल अधिक है। पानी वाले खेत में पक्षियों की गिनती करना व उनकी नस्ल को पहचानना भी गतिविधि में शामिल होता हैं। बालकों ने आपस में भी अच्छा संवाद बनाये रखा और स्वयं द्वारा सम्पन्न की जाने वाली कृषि क्रियाओं के बारे में चर्चा की। कुछ जंगली फलों कंदूरी, रसभरी व वाइल्ड डेट आदि पर भी चर्चा हुई और इन जंगली फलों के उपभोक्ताओं की भी गिनती की गयी, साथ ही पक्षियों के पंखों को एकत्र किया गया।

विद्यार्थियों के सीखने की दृष्टि से उस क्षेत्र भ्रमण से क्या हासिल हुआ इस पर उनकी चर्चा में निकल कर आया कि बहुत सी नयी बातें उन्होंने देखी समझी जिसमें मुख्यतः प्रकृती का महीन अध्ययन करना व अनुभव सहेजना रहा। बच्चो ने कहा कि हमने आज विज्ञान परियोजना-आधारित ज्ञानार्जन और स्वतंत्र छानबीन का अनुभव हासिल किया। क्षेत्र भ्रमण द्वारा परियोजना-आधारित सीखना उनके लिए एक नया अनुभव था। इसमें विद्यार्थियों को कोई भी प्रश्न सामने रखना था और फिर सवांद-चर्चा-प्रेक्षण से उसकी पुष्टि करनी थी प्रकृति के विशाल परिसर में छोटे वैज्ञानिकों की तरह कार्य करना उनके लिए अविस्मरणीय अनुभव था। अनुभव से सिखनमें जो मजा हैं।ऐसा ही मजा उंनके माध्यम से बच्चो को नए तरीके से शिखने का मौका मिल रहा है।

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आज शोधयात्रा एक संस्कार बन चुका हैं।हरियाणा ने छोटी छोटी शोधयात्रा की शुरुआत की हैं।

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