कोंन कितना महत्वपूर्ण...




कुछ संदेश ऐसे होते हैं जो हमे तुरन्त पसंद आते हैं।कोई जब फ्री होता हैं तब हमसे बात करता हैं।कोई जब भी आप से बात करते समय फ्री होंता हैं।इन दोनों में फर्क क्या हैं,वो समजना आवश्यक हैं।पिछले दिनों से कुछ ज्यादा काम से जुड़ना हुआ।वैसे तो रोज नया टास्क मिलता हैं और उसे में खत्म करता हूँ।मगर कुछ काम ऐसे होते हैं जो लंबे समय तक चलते है और व्यस्त कर देते हैं।

ऐसे समय में कई जब में मेरे अपनो से बात नहीं कर पाता हूँ तब जाके में परेशान हो जाता हूँ।बहोत साल हुए मे श्याम को 7 से 10.15 बजे तक सो गया।सारादिन ओर लंबे समय से काम के कारण मुजे ये करना पड़ा।सारी दिन की थकावट जैसे निकल गई।मगर वो ही थकान सुबह वापस आ गई।

कोंन ज्यादा व्यस्त हैं,इससे बड़ा सवाल ये हैं कि कोन अपने समय को अच्छे से मैनेज कर सकता हैं।जब हम किसी काम में होते हैं,तो ज्यादातर अननोन नंबर नहीं रिसिव करते।अब मुजे ये समझ नहीं आ रहा हैं कि ऐसा क्यों होता हैं।जब भी बात करनी हो और बात हो पाए इसका सीधा मतलब हैं हम हमारे स्थान को सन्मान जनक तोर पे बढ़ाना हैं।समजो...में रात को एक बजे फोन करू ओर आपके हालचाल पुछु तो आप गाली देंगे।मगर श्री नरेन्द्र मोदी जी आपको रातनके 2 बजे भी फोन करके पूछेंगे तो आप ख़ुशी से उन्हें जवाब देंगे और दूसरे दिन सबको ख़ुशी ख़ुशी बतलायेंगे।क्यो की नरेंद्र मोदी मुझसे बड़े और सन्मान जनक हैं।

मेरा मानना हैं कि आप को सभी के फोन रिसीव करने चाहिए।अगर इतना ही हैं तो आप लैंडलाइन का उपयोग करे।जब हम फ्री होते हैं और कोई हमे बात करेगा,ओर तो ही हम बात करेंगे ये बात तो गलत हैं।सोचिए,हमे किसीका काम हैं और हमारा कोल वो रिसिव हीं न करे तो...!नंबर सेव हैं तो बाद में भी कोल करना चाहिए।वरना हमे हमारे काम के स्थानपर ये पोस्टर प्रिंट करवाना चाहिए।

@#@
हमारे लिए जो हमसे अधिक सोचता हैं,वो हमारे लिए कभी गलत नहीं सोचेगा।सवाल हैं ऐसी व्यक्ति की सही पहचान।

Comments

Popular posts from this blog

ગમતી નિશાળ:અનોખી શાળા.

ન્યાયાધીશ અને માસ્તર

અશ્વત્થામા અને સંજય જોષી