अब कोई रोयेगा नहीं...
जो होता हैं,वो रोता हैं।
जो जिंदा हैं वो कभी तो रोया होगा।आज कल देखा जाए तो रोने वाले को पूछो की क्यो रो रहे हैं तो उसे कोई न कोई कारण रोने को मिल ही जाता हैं।
कोई गरीबी से रोता हैं,
कोई अमीरी में रोता हैं।
कोई अकेले में रोता हैं,
कोई साम ने ही रोता हैं।
कोई पीछे से रो लेता हैं।
बस,
रोने के लिए जिगर चाहिए।आप कहेंगे रोने के लिए हिम्मत?!जी एक दम सही पकड़े हैं।वो व्यक्ति ही रोयेगा जो सच्चा होगा।
पड़ोस में किसी के देहांत से हमे इतना रोना नहीं आता जितना हमे अपनो के मरने पर आता हैं।में कुछ ऐसे लोगोंको जनता हु जो अपने आप रोने के कारण खोज लेते हैं।
अपने आप रोने के कारण खोजने वाले लोग हर वख्त अपनी बात को सही मानते हैं।ऐसे लोग जो किसी की बात का स्वीकार नहीं कर सकते हैं।ऐसे लोग या तो अकेले होते हैं,या अकेले पड़ जाते हैं।
में ज्यादातर हंसने ओर हंसाने में यकीन रखता हूँ।कभी कभी में रो लेता हूँ।ऐसा नहीं हैं कि में सभी के सामने रोता हूँ।मगर ऐसा जरूर होता हैं कि में अपना समझता हूं उनके सामने रोता हूँ।में जब कुछ नहीं समझ पाता या कर पाता तब में रोता हूँ।
मुजे ऐसा लगता हैं कि मुजे क्यो रोना पड़ता हैं।मगर तब मुजे मालूम होता हैं कि मैने जिनसे ख्वाहिश रखी होगी वो शायद गलत होगी।अपने आप को सही बताने वाले बहोत सारे लोग मेने ऐसे देखे हैं,जो किसी की बात को समझ ने से इनकार भी नहीं करते
हैं और नाहीं वो अपनी बात किसी ओर को समजाएँगे।अपने आप गुटन महसूस करके मरने से अच्छा हैं,अपनी मौत मरा जाए।
कोई अगर किसीका होता,हर कहि सुनी बात सही नहीं होती। लंका से वापस आने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम सीता माता को न छोड़ते।उन्हें किसी की बात पे भरोसा किया।और रामजी के नाम से ये एक बात जुड़ी हैं।
सच तो वो धोबी भी नहीं था।और गलत तो सीता माता या रावण ने भी नहीं किया था।फिरभी रामजी ने सीता जी को तिरस्कृत किया।कहिए कि उन्हें अपमानित होना पड़ा।जनक नगरी की राज कुमारी ओर रघु कुल की महारानी को जंगल में अपने बच्चों को जन्म देना पड़ता? ऐसा हुआ क्योकी रामजी गलत थे,मगर अपनी बात को छोड़ नहीं पाए थे।
रोये तो राम भी थे ओर सीता जी खुश नहीं थी। जी,राम जी का निर्णय गलत था। मगर आज भी सीता जी को कोई गुनहगार नहीं मानता।ओर कोई राम जी को इस बात के लिए सही नहीं ठहराता।
जो भी हैं,
रोये तो राम भी थे।
में भी ओर आप भी रोये होंगे।
जिनका हुकुम चलता हैं,वो डांट ते हैं तो थोड़ा गुस्सा आता हैं।मगर जब हुकुम निभाने के लिए अपने जीवन को बर्बाद करने तक को तैयार किसी को हुकुम ऐसे ही जलील करता हैं।वो रो लेता हैं।
जब हम गाड़ी में बैठे होते हैं,ट्रैफिक सिग्नल पे भीख मांगने वाले रोते हैं,बिलखते हैं।हम उन्हें कुछ देखे शांत करते हैं,सहकार देते हैं।मगर, उस व्यक्ति को भीख नहीं,स्वमान से काम चाहिए कि जिससे वो अपने परिवार की सरकार को चला पाए।ऐसा न होने पर क्या होगा...!कोई अपना जीवन बर्बाद करेगा या अपना जीवन समाप्त करेगा।तब जाके रुलाने वालो को मालूम होगा कि आए मरने वाले बाबू गलत नहीं थे।मगर तब वो सारे साथ बैठ के रोयेंगे मगर न रोयेगा वो जो मर चुका हैं।
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सिर्फ शरीर को खत्म करने से कोई मरता नहीं हैं।मरने के लिए रोज भी थोड़ा थोड़ा मर के जी सकते हैं।जिससे सामने वाले समजीए कि ये रोया भी नहीं ओर जिंदा भी नहीं।
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