साथ दे तो...











धारा भी साथ दे तो ओर बात हैं।
आप जराभी साथ देतो, ओर बात हैं।
जिंदगी गुजर सकती हैं,एक पैर पर।
दूसरा भी साथ दे तो ओर बात हैं।

शायद कुंवर 'बैचेन' ने लिखा हैं।आज दो दिनों बाद मोबाइल हाथ में आया तो मुजे सबसे अच्छी ये बात लगी।और मैने उस पे लिखना शुरू किया।

किसी ने कहा हैं...
अपने हाथों कि तकदीर तो मत देखो।
वो भी जी लेते हैं,जिन के हाथ नहीं होते।

अगर एक पैर हैं,तो ठीक हैं।मगर दो पैर हैं और चलने में दोनों साथ दे रहे हैं।बहोत अच्छी बात हैं।हम कितने भी बड़े क्यो न हो जाए।हमे किसी न किसी की जरूरत होती हैं।किसी को निभाने के लिए,जीवन पसार करने के लिए  जिन लोगो का साथ चाहिए उनका साथ मीले तो अच्छी बात हैं।

किसी का साथ में होना इसका मतलब ये नहीं हैं कि उसके आसपास होना।उसका मतलब हैं साथ होने का अहसास होना।अब ये अहसास फोन से बात करके मिलता हैं।अब आप सोचिए।आप बहार हैं।समजीए तो ही आगे की बात समज में आएगी।अब फिर से...

आप बाहर हैं।किसी काम से जुड़े हैं।आप काम से समय निकाल कर सुबह 7 बजे से रात को एक बजे तक कोल करते हैं।सामने वाले को कॉल रिसीव नहीं करना हैं ऐसा नहीं हैं।उन्हें आदत नहीं हैं कि वो फोन साइलेंट रखे।उन्हों ने फोन साइलेंट किया।अब....

अब दूसरे दिन...
क्या होगा।आप समजे वैसा कोई झगड़ा नहीं होगा।हुआ ऐ की दूसरे दिन कोल आया।जवाब मिला कल तो सायलेंट था,आज कहि पे मुजे जाना था।सोचा आपको बताऊ, मगर अब थोड़े देर में हम निकल रहे हैं।आप को फोन किये बगैर निकलने को मन नहीं करता था।अब बहार जाने के बाद रात को आएंगे,ओर smg करेंगे,अब में घर पे हु।आप अभी भी बाहर हैं,आप सिर्फ smg पढ़ सकते हैं।आप 12 बजे या आसपास  smg पढ़ेंगे।आप खुश हो जाओगे की अब मेरा परिवार सुरक्षित हैं।

अगर घर पे पहुंच ने का smg आपको मिलता हैं,तब आपको आराम होता हैं।कुछ लोगो के साथ रहने के बाद उनकी जैसे आदत होती हैं।आप तो परिबार के सदस्यों के लिए बेचैन हैं।

अब तीसरी बात...
आप सोचेंगे...
अगर कल बात हुई होती,फोन सायलेंट न होता तो कुछ बात करता...

दूसरा दिन sms से खत्म हुआ।कुछ बाते ऐसी होती हैं जिसे नापा नहीं जा सकता हैं।साथ चलने वाले अगर दोनों पैर किसी एक राह के बदले दूसरे राह पर चले तो....!कुछ तय हुआ था कि कुछ भी हो, तय किया गया था कि कुछ लोगो को इग्नोर करेंगे।मगर हुआ ऐ की जिन्हें इग्नोर करना था,उन के साथ मिलके पार्टी करली।अब...!दोनों पैर साथ कहा चले।कोई भी हो टीम तब सफल होती हैं जब एक  बॉलर हो,दूसरा बेस्टमेन कोई फील्डर भी हो।सभी अलग अलग काम में मास्टर हैं मगर बात कैप्टन की मानते हैं।अगर दो पैर हैं तो दोनों कैप्टन हैं।मगर एक कि बात दूसरा मानता नहीं हैं।

कई बार ऐसा होता हैं कि अपनी सही बात गलत समय पे करने से हमे बहोत भुगतना पड़ता हैं।में मेरे एक दोस्त को बहोत बार कहता हूं कि आप का जीवन सदैव ऐसे लोगो के आसपास हैं जो आपके अपने हैं।आप व्यक्ति को पहचान ने में गलत करते हैं।कुछ बाते ऐसी होती हैं,जिस में हम साफ हैं,मगर सामने वाले को इस में कुछ खास दिखाई देता हैं।ऐसी स्थिति में हम ये नहीं कहेंगे कि दोनों पैर साथ हैं,ये अलग बात हैं के एक पेर को रास्ता पहले से मालूम  हैं,मगर दूसरा थोड़ा देरी से समझता हैं।थोड़ी देर में मालूम होता हैं कि दोनों रास्ते अलग नहीं... पैर अलग हैं और एक रास्ते पे भी चलते हैं।कभी कुछ गलती होती हैं तो सुधार लेते हैं।

मुजे इतना मालूम हैं, की जो आप को जितनी इज्जत देता हैं,प्यार और सन्मान देता हैं।हम उससे अधिक देने का प्रयत्न करना चाहिए।हर बार अलग सोचना सही हैं,गलत सोचना सही में गलत हैं।
कुछ बाते समजाने या कहने से नही,अनुभव और परिस्थिति के सामने आने से समझ में आती हैं।मगर आज का ये शेर बहोत खूब हैं।
धारा भी साथ दे तो ओर बात हैं।
आप जराभी साथ देतो, ओर बात हैं।
जिंदगी गुजर सकती हैं,एक पैर पर।
दूसरा भी साथ दे तो ओर बात हैं।



@#@
कुछ ना कहो,
कुछ भी ना कहो।
क्या कहना हैं,क्या सुनना हैं।
समय का ये पल,थमसा गया हैं।
ओर इस पल में कोई न ही हैं...!
बस एक में हु, बस एक तुम हो।

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