विद्यार्थी कार्य

पिछले कुछ दिनों से कुछ बातें चर्चामें हैं।गुजरात में जून 2018 से NCERT की किताबें आ रही हैं।किताबे बदल ने जा रही हैं।सबसे अधिक चर्चा शिक्षकों में ओर पब्लिकेशन के व्यवसाय से जुड़े लोगों में हैं।

किताबे बदलती हैं,पॉलिसी भी बदल रही हैं।अब इन बातों को समज ने के लिए ट्रेनिग ओर आयोजन भीत महत्वपूर्ण हो गया हैं।शिक्षकों की तालीम के लिए KRP ओर RP के वर्ग चल रहे हैं।किसी एक तालीम में तीन बातो पे चर्चा हो रही थी।चर्चा में विषय था व्यक्तिगत कार्य,जूथकार्य ओर सामूहिक कार्य।इन तीन बातो की चर्चामें मेरा भी जुड़ना हुआ।

व्यक्तिगत कार्य:

इस कार्य में बच्चे अपने आप काम करते हैं।सूचना के आधारपर या किसी ओर काम के लिए जब विद्यार्थी कार्यरत होता हैं तो उसे व्यक्तिगत कार्य कहते हैं।

जूथकार्य:

जब एक से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलकर एक काम करते हैं तो उसे जूथकार्य कहा जाता हैं।इस काम में अलग अलग सदस्य अलग अलग काम या एक ही काम करते हैं।

समूहकार्य:

सभी बच्चे एक साथ काम करते हैं।जैसे कि अभिनय या गीत।ये दो सिर्फ उदाहरण हैं।जब सभी एक साथ जुड़कर काम करते हैं तो उसे समूहकार्य कहते हैं।

इन शब्दों के बारे में जब चर्चा हुई तब एक नया शब्द सामने आया।वैसे तो ये शब्द नया नहीं हैं,मगर उसे थोड़ा हटके समजना हैं।ये शब्द हैं सर्जनात्मक कार्य।जब हम विद्यार्थियो को एक समान चित्र देते हैं,उसमें रंग भरने की बात करते हैं।हमारी समज में शायद वो सर्जनात्मक कार्य होंगया,सही में ये काम आदेश के आधारपर अमल करने वाला होता हैं।इसे सर्जनात्मकता नहीं कहते हैं।

ऐसी छोटी छोटी बाते ही हमे आगे का काम समजा सकता हैं।बच्चो के साथ काम करना एक चुनोती हैं।उस में सफल होने के लिए सबसे पहली शर्त हैं 'बच्चे बनकर सोचे' ओर तो ही हम हमारे काम को अच्छे से दिखा सकते हैं।

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जब बच्चो से काम करना हैं तो हमे बच्चा बनना हैं।क्योंकि जब छोटा बच्चा हमारी नकल करता हैं तो वो हम जैसा बनता हैं।जब हम  बच्चो के लिए काम करते हैं तो क्या हमें बच्चा नहीं बनना चाहिए?

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