जिंदगी

किसी ने कहा हैं,जिंदगी जिंदा दिलीका नाम हैं,मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं।हमने जिंदगी को करीब से देखा हैं।बहोत बार हम ऐसा किसी के मुह से सुनते हैं।ये सुनने में जितना अच्छा लगता हैं,उतना सरल होता नहीं हैं।आज के पोस्टरमें आप इसे अच्छे से समज सकोगे।
जब हमारी जिंदगी शुरू होती हैं,मम्मी पापा ओर अन्यका सहयोग और समर्पण हमारे लिए रहता हैं।जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती हैं।वैसे वैसे हम कुछ कमजोर हो जाते हैं।जब अपने पैरों पे अपनी जिम्मेदारी आती हैं,हमारा रंग और जीवन बदल जाता हैं।
आखिर में थके हारे हम ऐसे हालात में पहुंच जाते हैं कि हम कुछ करने के काबिल नहीं रहते।आज अगर देखा जाए तो हमारा जीवन और सुविधाओं को हम सुख मानते हैं।इस हालमें एक ही बात हमारे सामने आती हैं।ये बात हैं आत्म विश्वास और अपने पन की पहचान।हम भी हमारी पहचान बनाते हुए जीवन को पूर्ण करने की ओर आगे बढ़ते हैं।बच्चा जब छोटा होता हैं,उसे चलने में ओर खाने में हमे सहयोग करना पड़ता हैं।ऐसी ही बात बुढ़ापे में आती हैं।इसका मतलब ये हैं कि कॉम्युटर जहाँ से शुरू होता हैं,वही से बंध होता हैं।हमने हमारे बच्चों से जो व्यवहार किया होगा,हमारे बच्चों के सामने हमने हमारे वडील या बुजुर्ग से जो व्यवहार किया होगा।वो बच्च उनके मातापिता के सामने ऐसा ही व्यवहार करेंगे।हमे अपना जीवन खुद बनाना हैं।हम अपना जीवन खुद निर्माण करना हैं।

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आप जो करना चाहते हो,
किसी भी उम्र में आप उसे खत्म करना चाहोगे तो लोग कहेंगे।तुम्हे क्या हैं,तुम्हे ये नहीं करना चाहिए।अब ये शोभा नहीं देता।
तो उसके लिए कोई मार्गदर्शिका हो कि आप कब क्या कर सकते हैं।

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