हास्य कविता स्त्रिलीग:पुलिंग

पुण्यतिथि पे याद करना हमारे संस्कार हैं।आज 18 मार्च को हास्य कवि श्री काका हाथरसी जी की पुण्यतिथि थी।मेरे एक दोस्त हैं।जानी सर के नामसे में उन्हें बुलाता हु।वो कभी कभी कुछ भेजते हैं।आज उन्होंने मुजे एक कविता भेजी।काका हाथरसी उनका तख़लूस था।उनका असली नाम: प्रभुलाल गर्ग था।उनकी एक रचना विश्व प्रसिद्ध हैं।आज उनकी पुण्य तिथि पर में ये शेर करता हूँ।

स्त्रीलिंग, पुल्लिंग

काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंग,
दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग।

ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर गलती की है,
मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है।

कह काका कवि पुरूष वर्ग की किस्मत खोटी,
मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी।

दुल्हन का सिन्दूर से शोभित हुआ ललाट,
दूल्हा जी के तिलक को रोली हुई अलॉट।

रोली हुई अलॉट, टॉप्स, लॉकेट, दस्ताने,
छल्ला, बिछुआ, हार, नाम सब हैं मर्दाने।

पढ़ी लिखी या अपढ़ देवियाँ पहने बाला,
स्त्रीलिंग जंजीर गले लटकाते लाला।

लाली जी के सामने लाला पकड़ें कान,
उनका घर पुल्लिंग है, स्त्रीलिंग है दुकान।

स्त्रीलिंग दुकान, नाम सब किसने छाँटे,
काजल, पाउडर, हैं पुल्लिंग नाक के काँटे।

कह काका कवि धन्य विधाता भेद न जाना,
मूँछ मर्दों को मिली, किन्तु है नाम जनाना।

ऐसी-ऐसी सैंकड़ों अपने पास मिसाल,
काकी जी का मायका, काका की ससुराल।

काका की ससुराल, बचाओ कृष्णमुरारी,
उनका बेलन देख कांपती छड़ी हमारी।

कैसे जीत सकेंगे उनसे करके झगड़ा,
अपनी चिमटी से उनका चिमटा है तगड़ा।

मंत्री, संतरी, विधायक सभी शब्द पुल्लिंग,
तो भारत सरकार फिर क्यों है स्त्रीलिंग?

क्यों है स्त्रीलिंग, समझ में बात ना आती,
नब्बे प्रतिशत मर्द, किन्तु संसद कहलाती।

काका बस में चढ़े हो गए नर से नारी,
कंडक्टर ने कहा आ गयी एक सवारी।
Thanks जानी सर...

@701@
साहित्य के सर्जक जब विशेष साहित्य की रचना करते हैं,तब उनके मन में कुछ नया करने का भाव होता हैं।कुछ नया वो ही कर सकता हैं जो सर्जनशीलताको विशेष स्थान देता हैं।

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