उल्टी यात्रा दांडी से साबरमती...


कुछ दिनों पहले की बात हैं।
उस दिन दांडी यात्रा को 88 साल खत्म हुए।गांधी बापू से जुड़ी संस्थाओ ने अपने अपने तरीको से उस दिन को याद किया।
मेरे एक दोस्त हैं। 
मयूरध्वजसिंहजी महाराउल।जो अंकलेश्वर के पास अंदाडा गांव में रहते हैं। व्यावसायिक तोर पे वो इजनेर हैं।उन्होंने इंजियरिंग की पदवी लकधरीसिंह इंजिनयरिंग कॉलेज,मोरबी से प्राप्त की हैं।पिछले दस सालो से वो पीडिलाइट कंपनी में हैं। वो आज कंपनी में  ऑफिसर के रूपमें पूरे दक्षिण गुजरात  जिम्मेदारी निभा रहे हैं।अच्छी तनख्वा से अच्छे विचार नहीं आते।कुछ दरियादिली भी चाहिए।अपने पिता को बचपन में ही खो चुके थे।अपनी 15 वर्ष की आयु में वो अपने पिता की छत्रछाया खो चुके थे।उनकी माता जी ने मयूरध्वज जी के साथ दोनों भाई बहनों को पाला,बड़ा किया। उनकी बहन तेजस्विनी जी आज युवकों से जुड़े संगठन से जुड़ी हैं।कार्यरत हैं।कुछ महीनों पहले की बात हैं।
मयूरध्वज जी को पेरमें चोट लगी थी।करीबन छे महीनों तक उन्हें आराम करना पड़ा।कहते हैं कि कुछ दिन ऐसे होते हैं,की उन दिनों में  किये गए संकल्प हमे चेन नहीं लेने देते।मयूरध्वज जी ने ऐसा ही संकल्प किया।जब वो चल नहीं पाते थे।उन्होंने दांडी के मार्ग पर चलने का सोचा। गांधीजी ने नमक के ऊपर अंग्रेजो ने लगाया हुआ शेष न भरने ओर अपने अधिकारों को समजाने के लिए दांडी यात्रा की थी।आज भी लोगो को ऐसा लगता हैं कि दांडी में नमक का उत्पादन होता होगा।मगर आज ओर पहले भी कभी दांडी में नमक का उत्पादन नहीं हुआ हैं।
अंग्रेजो को था कि गांधीजी यहां कहां से नमक लाएंगे।मगर उनके किसी सहयोगी ने थोडासा नमक का ढेर संभाल के रखा था।बापू ने उस ढेर से थोड़ा नमक लिया।इस घटना ने गांधी के प्रति विश्वास बढ़ा दिया।
उस विचार को ओर गांधी जीवन को आज भी बहोत लोग अपना रहे हैं।वैसे ही एक युवान मयूरध्वजसिंह जी ने एक संकल्प लिया हैं।वो दांडी यात्रा के सभी गाम में जाके सद्भाव की बात फैलाने का काम कर रहे हैं।इस रास्ते में जो भी गाँव आएंगे और जिस गाँव में समरस पंचायत है वहां के सरपंच ओर ग्राम जनों से मिलके वो गाँव के बारे में जानकारी लेंगे।
वैसे तो दांडी से निकल कर वापस साबरमती आने का रास्ता एकदम उल्टा हैं।मगर मयूर जी ने ये रास्ता इस लिए लिया क्योकि उन्होंने सोचा था कि जहाँ समरस पंचायत हो वहाँ जाएंगे।सभीको जानकर ये खुशी होगी कि दांडी गाँव में आजतक सरपंच का चुनाव नहीं हुआ हैं।और इसी किये सद्भाव ओर समरसता की बात के लिए उन्होंने वहां से ये काम किया। में चाहता हु की वो इस प्रवास को किताब के स्वरूप में तैयार करें।
आज भी उनके पैरों में दिक्कत हैं,आशा हैं वो सुखरूप अपना अध्याय खत्म करेंगे।


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जो सोचते हैं।
वो सोचते हैं,जो जिम्मेदार हैं।
वो,सोचते भी हैं और करते भी हैं।
परिणाम सदैव सफलता के साथ नहीं आता।कभी हमे आगे की व्यवस्था के लिए असफलता भी सहायक होती हैं।

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