महीने के 5...


मेने सुना हैं।
शाहबुद्धिन राठौर ने कहा हैं।
अपनी बात को रखते हुए उन्होंने कहा हैं कि शादीसुदा जीवन में महीने में चार से पांच सामान्य विवाद या तकरार नहीं होती हैं तो वो सह जीवन शांत नहीं हो सकता।
अब
कोई व्यक्ति कहेगा,ऐसा क्यों होता हैं।तो मेरा जवाब हैं की यहाँ दो व्यक्ति हैं हर बात में मनना संभव नहीं हैं।सही भी नहीं हैं।ऐसी बातों में तकरार लाजमी हैं।तभी तो शादी के बाद जीवन में ऐसी तकरार लाजमी हैं,एमजीआर ऐसे   छोटे मुद्दों पे हो तो ठीक हैं।

ये कोई ऐसी घटना नहीं हैं जिससे आपका जीवन खत्म हो जाएगा।ये ऐसी बात हैं जो आपको ओर करीब लाएगा।जैसे जैसे करीबी बढ़ती जायेगी वैसे वैसे ऐसी छोटी अरे एकदम से ऐसी कोई बात जो आपको झगड़ा करवाएगी।हो सकता हैं कुछ दिनों से झगड़ा नही किया हो।
हो सकता हैं कि पिछले सप्ताह झगड़ा हुआ था,सो आज हुआ हो।
महीने में चार या पांच का मतलब हैं सप्ताह में एक।अगर सप्ताह में एक नहीं होता तो कुछ भी करके लरायत्न करे कि छोटासा झगड़ा हो।जहाँ अधिकार हैं,वहां अपना अभिप्राय भी होगा।अभिप्राय हैं तो कुछ तो जताना चाहिए।में कहती हूं आप गलत मतलब निकल ते हो।जी हां, आए सामान्य रूप से सवाल हैं जो सामने आता हैं।आप जो कहते हैं वो ही समज जरूरी हैं।मग़र उस वख्त वो सांजे ले संम्भव नहीं हैं।उसे थोड़ा समय दीजिए।ये समय तब आएगा जब छोटी सी तकरार होगी।आप को बगैर कहे सांजे ने वाले व्यक्ति आप की बात कैसे नहीं समजेंगे।सवाल ये होता हैं कि वो आप को आगे का समजाएँगे।तब आपको लगेगा की वो आपकी बात का गलत मतलब निकाल रहे हैं।सिर्फ पत्नी ऐसी बात नहीं करती।पति भी कहते हैं,आप मुजे वलत समज रहे हैं।
अरे पतिदेव...
आप गलत नहीं हैं मगर आप से जुड़ी बात हैं तो आप से नहीं कहेंगे तो किसे कहेंगे।बस...ये सुख में आप एक दूसरे के साथ हैं।आप के घर में सरकार और हुकुम आप ही हैं।बस,ये कुछ ऐसा होता हैं जो नजदीक लेन का मौका देता हैं।

#समझ से परे...
#We can मुमकिन हैं...

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