पाप नहीं पूण्य...
पाप और पुण्य।
दोनों एक दूसरे के विरोधमें हैं।जब जब पाप की बात आती है,साथ में पूण्य की बात भी होती ही हैं।किसी ने लिखा हैं कि पाप करना नहीं पड़ता हो जाता हैं,मगर तो पूण्य करना पड़ता हैं।
पाप यानी किसीको दुख पहुंचाना, अधिकार से या किसी का हैं उससे कहींभी लेना।मन,कर्म और वचन से जुड़ने के बाद अगर कुछ गलती होती हैं तो उसे पाप मानना नहीं चाहिए।मगर सीधे अगर कोई हमे धोका दे रहा हैं,या हमारा गलत यूज़ होता हैं तो उनके लिए पाप हैं,तो जानबूजकर उसका विरोध न करना भी पाप से कुछ कम नहीं हैं।तो चलो पूण्य करने के मौके तलाश ते हुए हम गमारी जिंदगी को सवार ते हैं।न कभी पाप करूँगा,न पाप के क्रम में हिसा लूंगा।यही जीवन मंत्र हैं,ओर से देखते ही आगे बढ़ना हैं।
# गणेश जी
# सरकार से एकरार
We can मुमकिन हैं...!
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