मेरे दादा

डॉ भवेशपांड्या भावेष पंड्या dr bhavesh pandya record limca record world record innovation iim anil gupta


तब हमारा देश गुलाम था।
हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था।उस वख्त 150 साल से अधिक साल की अंग्रेजो की गुलामी चली आ रही थी।अंग्रेजो के लिए हिंदुस्थान सोने की चिड़िया वाला देश था।वो इस देश में ओर भी ज्यादा अधिक रहना और उसे लूटना चाहते थे।
शिक्षा से लेके व्यवस्था तक ऐसी साजिश चलती की लोग  शारीरिक और मानसिक रूप में आज़ादी मांग न पाए।ऐसी एक बात में आपको कहता हूं।

एक युवान।
उसका नाम पूनमचंद।
जयशंकर पंड्या के पुत्र।राजस्थान से नजदीक गुजरात का आखिरी गाँव मेघरज।गरीब मजदूर जयशंकर के पुत्र अपनी युवानी में देश को आज़ाद करने के इरादे से आगे बढ़ते गए।आसपास के सभी गाव,छोटे शहर और पूरे प्रदेशमें पूनमचंद को क्रांतिवीर की पहचान मिल चुकी थी।
स्वदेशी शिक्षा के लिए पूनमचंद छोटे से धनसुरा गाँव में अंग्रेजी स्कूल के शिक्षक बने।कुछ दिनों में उन्होंने देश सेवा के लिए अंग्रेजो की नोकरी छोड़कर, कुश्ती,कब्बडी,अंगकसरत के साथ शिक्षामें जुड़ गए।उनके इस काम के माध्यमसे स्वदेशी शिक्षा को बढ़ोतरी मिली।अंग्रेज भी इस भ्राह्मन युवान को पकड़ने के आयोजन में लगे।
ये जानकारी पूनमचंद को कहि से मिलगई।स्थानिक आदिबासी ओर अन्य वनवासियो की टोली उन्हें छुपने में मदद करती।उनकी क्रांति सेना में वनवासी महत्वपूर्ण थे।
इस प्रदेश में होली का त्योहार  बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था।अंग्रेजो ने कुछ साल से इस त्योहार को मनाने में एक नई बात जोड़ी थी।एक नग्न पुरुष का स्टेच्यू(प्रतिकृति)बनाई जाती थी।इस को खास नाम दिया जाता था।इस नग्न पुरुष के स्टेच्यू को 'इलाजीनु बावलु' (इलाजी का स्टेच्यू) कहा जाता था।इस स्टेच्यू के आसपास सारी महिलाओं को प्रदक्षिणा करनी पड़ती थी।इस व्यबस्था के विरोध में पूनमचंद की क्रांतिसेना ने कुछ करने का तय किया।जिस दिन होली के त्योहार के लिए अंग्रेज स्टेच्यू बनाके गए उस रात क्रांतिसेना को मालूम हुआ कि स्टेच्यू तैयार हैं।अंग्रेज जैसे ही स्टेच्यू बनाके गए उसी रात उस स्टेच्यू को तोड़ दिया गया।
दूसरे दिन मेघरज ओर आसपास के वनवासी नियम के आधीन इलाजी की प्रदक्षिणा करने इकठ्ठा हुए तब सबको मालूम पड़ा कि किसी ने उस स्टेच्यू को तोड़ के फेंक दिया हैं।पूरे महोत्सव में भागदौड़ मची।अंग्रेजो ने क्रांतिसेना के साथियो को पकड़ा।अंतमें पूनमचंद को पकड़लिया गया।उन्हें 6 महीने की जेल हुई।आज भी मेघरज में इस स्थान को इलाजी की जगह के नाम से जाना जाता हैं।अपने जीवन में सरकारी नोकरी छोड़ के अपने परिवार को भी त्याग करके पूनमचंद ने 8 बार जेल यात्रा की ।आज मेघरज में उनके नाम से राजमार्ग का नाम दिया गया हैं।श्री क्रांतिवीर पूनमचंद पंड्या जिस घर में पैदा हुए थे उस घर की ओर जाने वाले राजमार्ग को 'स्व.स्वतंत्र सेनानी पूनमचंद पंड्या मार्ग' नाम दिया गया हैं।आज भी मेघरज से सटे वनवासी परिवार पूनमचंद पंड्या के परिवार को 'चंचीमा' के परिवार से जानता हैं।चंचलबेन पंड्या पूनमचंद की धर्मपत्नी थी।आजादी की जंग में शहीद पूनमचंद के निधन के बाद अपने 4 लड़के और 3 लड़कियों के पालन के लिए चंचल मा वनवासी गांव में गुमती ओर कथा पठन, धर्मकार्य करके एक महिला पंडित बनके विधिविधान करके अपने परिवार का पालन करती।
पूनमचंद पंड्या ओर चंचल पंड्या मेरे दादा दादी हैं।मुजे गौरव हैं कि मेघरज का ब्राह्मण और कांतिकारी परिवार से जुड़ा हूं।
#मेरे दादा

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