परखे या समजें....

किसीको परखने की नहीं,
समजने की कोशिश करें।

मेरे एक दोस्त हैं।
उनका नाम रामजी भाई।
रामजी भाई किसान हैं।वो अपने खेतमें कुछ नया करते रहते हैं।एक दिन की बात हैं।हम साथमें थे।मेने उन्हें कहा,'में आपको परख नहीं पाता,आप किसान हैं कि शिक्षक।हाला की वो किसान हैं मगर उनके फार्म में शिखने वाले आते रहते हैं।
मेरा सवाल सुनते उन्होंने कहा,'में किसान हूँ, मेरा काम हैं कि में ऋतु आधारित व्यवस्था को समजू ओर उसके साथ कुछ नया करू।उन्हों ने कहा 'में समज ने की नहीं परखने की कोशिश करता हूँ!'
मेने उनके जीवन और जीवन व्यावस्थाको करीब से देखा हैं।वो किसान हैं,नवाचार करते हैं।उनके बच्चे और परिवार उन्हें सहाय नहीं करते हैं।इस बात के लिए उन्हें जब पूछा तो उन्होंने बताया कि 'वो मुजे परख रहे हैं,में उन्हें समज रहा हूँ।उनका परखने का या मेरा समज ने का जब खत्म होगा तब में कुछ नहीं कर पाऊंगा।मेने जो किया या कर रहा हूँ,वो इस लिए की में उन्हें जता सकू में कुछ कर सकता हूँ,ओर अपने आप से कुछ करता रहूंगा।
पारिवारिक सहाय अगर न होतो कुछ नहीं हो सकता।परिवार को परखने के बजाय उन्हे समज ने का प्रयत्न हमे करना चाहिए।
रामजी भाई ने मुजे एक प्रसंग कहा...।
उनका कहना था कि,जब हम सफल होंगे तो लोग कहेंगे 'नसीब वाला या वाली हैं'।उस सफलत के पीछे हमने क्या छोड़ा या क्या तकलीफ जेली हैं।उस बात का कोई जिक्र नहीं करता।तब हम हमारे नसीब को देखते हैं।हम हमारे नसीब को सांजे ने की बजाय परखने का काम करते हैं।हम सिर्फ काम करना हैं।परखने में समय बर्बाद न करें।जब हम सफल होंगे तब लोग हमें समझने का ढोंग करेंगे।
आज हम नाटक  के मुख्य किरदारमें भले न हो।एक दिन हमें केन्द्रमें रखके किरदार लिखे जाएंगे।तब तक हम समजेंगे, परखेंगे नहीं।
#देखेंगे...समजेंगे...नए तरीके...

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