विवेकानंद ओर शिवराम
विवेकानंद आने गुरु के पास थे।विवेकानंद तब भाषा का अभ्यास कर रहे थे।उनके गुरि शिवराम विद्वान थे।विद्वान होने पर भी वो गरीबी का सामना कर रहे थे।आसपास के लोग भी इन्हें सहकार देनेको तैयार थे,मगर शिवराम उनसे मांगते ही नहीं थे।शिवराम किसी से अपनी जरूरियात के बारे में नहीं कहते थे।शिवराम के इस स्वभाव के कारण उनका परिवार और स्वयं शिवराम तीन दिनोंसे भूखे थे।
आज उनके उपवास का चौथा दिन था।विवेकानंद उस समय विद्यार्थी थे।वो भी उनके गुरु शिवराम की इस स्थिति से अवगत नहीं थे।
शिवराम अपना शिक्षा कार्य कर रहेथे।तभी एक टपाली आया।उसने एक तार ओर 10 रूपिया दिया।शिवराम तार को पढ़कर रोने लगे।विवेकानंद जी ने उन्हें पूछा गुरुजी,क्या हुआ?ये सुनकर शिवराम जी ने वो तार विवेकानंद जी को बताया।ये तार काशी से आया था।जिसमें लिझ था 'मयजे स्वयम शंकर भगवान ने स्वप्नमें आके कहा हैं कि मेरा एक भक्त वराह मिहिर में हैं।उनका नाम शिवराम हैं।उन्हें सहाय करें,उन्हें सेवा पहुंचाए'!तार में लिखा था में शिवजी की आज्ञा से ये पैसा भेज रहा हूं।आए तार पढ़कर विवेकानंद ने कहा 'गुरुजी,आपने मुजे भी नही बताया?'विवेकानंद का सवाल सुनकर शिवराम जी ने के रडे,मुजे स्वयम परम् पिता सुन रहे हैं तो में मेरी समस्या उनके संतानों को क्यो सुनाऊ?
उनकी सेवा और विश्वास देखकर विवेकानंद प्रभावित हुए।ऐसे गुरुजीओ से शिक्षा पाएंगे तभी विवेकानंद बनेंगे।
#वेवेकानंद
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