गाँधी जी की मस्ती...


हम छोटे थे।
एक कहानी हमे कहि जाती थी।
बात ऐसी की एक बार भगवान और राक्षसों ने एक साथ भोजन लेनेका आयोजन किया।सबसे पहले राक्षशो की बारी थी।शर्त ये थी कि अपने हाथ को मोड़ना नहीं हैं।अब राक्षश खड़े होकर खाना उछालने लगे।बात ये बनी की कोई खा न पाया।दूसरे दिन भगवान को न्योता मिला।कई सारे भगवान थे।उनके लिए भी शर्त ये थी कि अपने हाथ नहीं मोड़ने हैं।भगवान एक दूसरे के सामने बैठे।उन्होंने हाथ मोड़े बिना भरपेट खाना खाया।
आज गांधीजी को मजाक बनाया जाता हैं!एक सवाल किसीने किया,किसी ओरने उसका मजाक बनाया!आज ऐ गुमता फिरता मुज तक पहुंचा!क्या आप मानते हैं की किसी बच्चे नें ऐसा जवाब दिया हो?ऐसे कई सवाल पैदा होते हैं!उसके जवाब भी ऐसे हम टी करते फेलाते हैं!गाँधी जी का जन्म कहा हुआ था?बच्चे लिखते हैं 'घर में...'मजाक के लिए ये सब ठीक हैं!मगर मजाक बनाने वालो को ऐसा नहीं करना चाहिए!क्या हया दिया गया पोस्टर और बच्चे के बारें में हम सहमत हैं की उसने ये जवाब दिया होगा?
जो भी हैं,ये गलत हैं!में ये मनाता हूँ की जो बच्चा सवाल पढ़ सकता हैं वो ऐसे तो नहीं लिख सकता!फिरभी आप सबके सामने में विचार आपसे शेर करता हूँ!आज ये गाँधी वाले पोस्टरको देखकर मुजे ये कहानी याद आई हैं।हम इस तरीके से काम करना चाहिए जिससे साथ जुड़ने वाले का ओर हमारा दोनोका भला हो।करेंगे भला,होगा भला।
#मेरा काम,मेरी सरकार

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