आदिवासी दिवस...

विश्व की भोली प्रजा।
विश्व की बहादूर प्रजा।
कुदरत के साथ कदम मिलाके सबसे ज्यादा जीने वाली प्रजा।जहाँ में पैदा हुआ,वो क्षेत्र तत्कालीन साबरकांठा डिस्ट्रिक्ट के ईशान कोनेमें पड़ता था।मेने उनकी संस्कृति को करीब से देखा,समजा ओर अहसास के साथ पालाभी हैं।
उनका रहन सहन,उनकी भाषा,उनकी बोली ओर उनके रिवाज़ ऐसे की उसे हमे कुछ नया सिखनेको मिले।पिछले कुछ सालोंसे उनको भी कई सारी सुविधा और शिक्षा प्राप्त हैं।जहांतक गुजरात का सवाल हैं,कुछ ऐसा हैं जो उन्हें दुनिया से जोड़ रहा हैं।डांग दरबार देखो,बांठीवाडा की होली देखो।कुछ एरिया बेज नई बाते हमे जोड़ती हैं।उनकी शादिमें मेने खेतमें जोते जाने वाले हल ओर कन्यादान में जीवंत गाय का दान मेने देखा हैं।अरे,गौ दान के बाद उसे ससुराल तकभी पहुंचाया जाता हैं।
आज जहाँ शिक्षित और अर्ध शिक्षित व्यक्ति विधवा विवाह से परहेज करता हैं।कुछ हिस्सों में पहेली शादी के बाद ससुराल वाले अपनी विधवा बहु को छोटे भाई या किसी ओर के साथ शादी करवाते हैं।शादी की रसम ओर गाने भी ऐसे की बात छोड़ो।हर छोटी बातकी खुशी उनके व्यवहारमें दिखती हैं।आज के दिनमें बस उनको पूर्ण शिक्षा और सुविधा प्राप्त हो रही हैं।उनका जीवन बदल रहा हैं।कुछ संस्था ओर संघठन उस व्यवस्था को संभालने का प्रयत्न करती हैं।बहोत सारे बदलाव के साथ आज हम सब को आदिवासी दिवस पर बधाई।

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