होली का त्यौहार और गुजरात...


आज कई दोस्तों ने रंगपर्व की शुभकामना दी!मेने भी कई सरे दोस्तोको शुभकामना बांटी!आज का दिन राजस्थान,गुजरात महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में होली और रंगपर्व के तोर पे मनाया जाता हैं! आज के दिन में आपको बात करूँगा गुजरात के एक ऐसे प्रदेश की जहा होली को कई सदियों से अलग तरीके से मनाया जाता हैं! उत्तर गुजरात के इशान कोनेमें एक प्रदेश हैं! यह प्रदेश मेघरज के नाम से जाना जाता हैं! राजस्थान और मध्यप्रदेश से जुड़ा हुआ ऐ प्रदेश ट्रायबल बेल्ट के तोर पे अपनी अलग पहचान बनाये रखता हैं!

गुजराती में जिन्हें ठाकरडा कहते हैं ऐसे सामाजिक एवं शैक्षणिक व्यवस्था में पिछड़े जाती के लोग यहाँ रहते हैं! मेघरज से उनका छोटा बड़ा व्यव्हार हैं! शिक्षा और सामाजिक विचारोमे आज भी पिछड़े लोगो को अगर आप देखना चाहो,उनके जन जीवन पर अभ्यास करना चाहो तो आप यहाँ आके काम कर सकते हों!

इस गाव में सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह हैं की यहाँ होली का त्यौहार देखने को दूर दूर से लोग और मिडिया कर्मी आते हैं! आसपास से जुड़े 12 छोटे गाव को मिला के यहाँ ‘बाठीवाडा’ गाव या एक छोटा प्रदेश हैं! 15.००० के करीब जनसँख्या वाला ऐ समूह गाव एक ही तरह के कायदे और सामाजिक व्यवस्थाको अपनाता हैं! यहाँ ‘चाडिया’ के नाम से होली के दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता हैं! सभी बार छोटे गाव से यहाँ लोग इकठ्ठा होते हैं! चाडिया के लिए सब इकठ्ठा होते हैं! चाडिया याने एक जगह की बात दूसरी जगह कहने वाला!गुजराती शब्द हैं जिसका मतलब हैं चाडी करने वाली व्यक्ति~आसपास के सभी गाव से कपडे और लकड़ी इकठ्ठा करके एक पुरूष की मूर्ती बनाई जाती हैं! मुझे इस के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए श्री योगेश पंड्या ने बताया की तिन चार बड़ी लकड़ी को पकd के उसके ऊपर चाडिया को बंधा जाता हैं! पिछली एक साल में जिन की शादी हुई हैं ऐसे नव विवाहित पुरुष चाडिया को पाने का प्रयास करते हैं! आसपास खड़े लोग उन्हें चाडिया तक पहुचनेमे और उसे पाने में बाधा ऐ कड़ी करते हैं! कभी कभी यहाँ गंभीर चोट या मोट भी हो जाती हैं!

शराब और सीनाजोरी पिछले कुछ सालो से कम हैं! वरना आज होली और उसके आसपास के बो तिन दिन कोई इन छोटे 12 गाव या बांठीवाडा के करीब से निकलने में या मुसाफ़री करने में दर महसूस करते हैं! कहा जाता हैं की यहाँ हजारो की संख्या में लोग आते हैं! एक एक ढोल के पीछे 150 से 200 लोग होते हैं! सरे ढोल बजाने वाले समूचे मेघरज के सभी गाव से आते हैं! पुरे रास्ते में ढोल वाले ग्रुप दिखाते हैं! कोई भी उन्हें होली के संदर्भमे कुछ दिए बिना नहीं जा सकता!

कहा जाता हैं की यहाँ पे पहले कभी नियत मुर्हुत में होली दहन नहीं होता था!यहाँ कोई भी छोटी बड़ी तकरार होती होर उसके बाद जगडा!और उसका नत भी बुरा आता!जब तक कोई मर नहीं जाता यहाँ होली नहीं होती!पिछले कई सालो से उसमे कुछ [अरिवर्तन आया हैं! आज यहाँ होली के दिन समग्र डिस्ट्रिक की पोलिस भी आ जाती हैं! में आज लिख रहा हौं! मेने ऐसी होली...अरे..बाठीवाडा की होली को देखा हैं! मिडिया के लिए कुछ साल पहले कवरे ज भी किया था! आज भी वहा होलिका त्यौहार ऐसे ही मनाया जाता हैं! आज तो यहाँ कई लोग कमाने हेतु बहार निकल चुके हैं मगर इस दिन कहीसे भी बाठीवाडा पहुँच के इसके पर्व में अपनी जात को यहाँ समर्पित करता हैं! ट्रायबल बेल्ट में रहने वाले लोगो की जीवन शैली के अभ्यास के हेतु इस त्यौहार को देखना एक उत्सव ही कहूँगा!


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