what भाषा or what बोली...
एक और महत्वपूर्ण मसला है भाषा व बोली का।
जिस भी मंच पर भाषा-शिक्षण की बात होती है, यह मसला जरूर उठता है। शिक्षक बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को दूसरे
दर्जे की समझते हैं क्योंकि उनका मानना है कि भाषा तो वह होती है जिसका अपना
साहित्य व व्याकरण होता है, उसकी लिपि होती
है, वह मानकीकृत व शुद्ध होती है। बच्चे जो भाषा
अपने घर से लेकर आते हैं वह तो भाषा नहीं है क्योंकि वह तो एक क्षेत्र विशेष के
लोगों द्वारा बोली जाती है, उसका न तो
साहित्य है न व्याकरण न लिपि।अत: स्कूल के पहले दिन से ही बच्चों को
मानकीकृत और शुद्ध भाषा सिखाने का प्रयास किया जाता है। और यदि बच्चे अपनी घरेलू
भाषा का प्रयोग विद्यालय में करते हैं तो उन्हें डाँट दिया जाता है। बच्चे यह
समझ नहीं पाते कि उन्हें क्यों डाँटा जा रहा है ?
घर में आसपास परिवेश में हर कहीं वही भाषा
बोली जाती है पर स्कूल में अध्यापक के सामने जब वे बोलते हैं तो गलत क्यों हो
जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। जैसे कि हमने पहले भी बात की। भाषा व्यक्ति
की संस्कृति व पहचान होती है। बच्चे द्वारा अपनी घरेलू भाषा का उपयोग न करने
देना उसकी पहचान व संस्कृति पर सीधा प्रहार है। बार-बार डाँट खाने के कारण जो बच्चे
इतनी बातचीत करते हैं, धीरे-धीरे बात
करना ही बन्द कर देते हैं।
यदि भाषा-विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो
भाषा व बोली में कोई फर्क नहीं होता। भाषा का भी व्याकरण होता है, बोली का भी। यह बात जरूर है कि वह व्याकरण
लिखित रूप में उपलब्ध नहीं होता। पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि व्याकरण होता
ही नहीं। यही बात साहित्य पर भी लागू होती है। हो सकता है कि कई बोलियों (भाषाओं)
में लिखित साहित्य न हो लेकिन मौखिक साहित्य जरूर होता है। दूसरा भोजपुरी, अवधी, मैथिली जिन्हें हम बोलियाँ कहते हैं उनमें तो बहुत साहित्य उपलब्ध है। भाषा
का क्षेत्र विस्तृत है अथवा बोली का? - यह आप सोचिए कि हिन्दी भाषी लोग ज्यादा हैं अथवा भोजपुरी। और जो भी लोग हिन्दी
बोलते हैं वे कितनी शुद्ध हिन्दी बोलते हैं। और रही लिपि वाली बात तो दुनिया की
किसी भी भाषा को किसी भी लिपि में लिख सकते हैं उदाहरण के लिए-
Ram Ghar
Jata hai
राम घर जाता है
हिन्दी भाषा को आप रोमन लिपि में लिख सकते
हैं। और आजकल तो मोबाइल, कम्प्यूटर सभी
पर हम यही करते हैं। अँग्रेजी भाषा को आप देवनागरी में लिख सकते हैं।
राम इज़ गोइंग
Ram
is going
अध्यापक यह मानते हैं कि एक भाषा दूसरी भाषा
सीखने में बाधक होती है। उदाहरणार्थ यदि बच्चा मेवाड़ी (क्षेत्रीय भाषा) जानता है
तो उसका नकारात्मक प्रभाव उसके हिन्दी (मानकीकृत भाषा) सीखने पर पड़ेगा। लेकिन
होता इसका उल्टा है। भाषा शिक्षा के द्वारा हम बच्चे की जिन क्षमताओं को विकसित
करना चाहते हैं यथा सोचने-विचारने, अपनी बात कहने, तर्क करने, विश्लेषण करने वो तो उनकी अपनी भाषा में आसानी से विकसित हो सकती है और फिर
यह कौशल दूसरी भाषा में स्थानान्तरित किया जा सकता है। रही उच्चारण व मानकीकृत
भाषा की बात तो उपयुक्त सन्दर्भ व वातावरण मिलने पर बच्चे स्वयं ही धीरे-धीरे
यह सब सीख जाते हैं।
Comments