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सीआईएससीई (CISCE: Council for the Indian School Certificate Examinations) और सीबीएसई(CBSE: 

Central Board of Secondary Education) के स्कूलों में बच्चों पर लादे गए पाठ्यक्रम एवं होमवर्क के दबाव ने उनका शारीरिक विकास रोक दिया है। बड़ा पाठ्यक्रम और स्कूलों में मिलने वाले रोज-रोज के होमवर्क ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। बच्चे स्कूल से घर आने के बाद भी हर समय होमवर्क, प्रोजेक्ट सहित अन्य गतिविधियों जुटे रहते हैं। खेलकूद जैसी गतिविधियों में भागीदारी के अभाव में बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है। हालांकि इधर सीबीएसई ने भी बच्चों के होमवर्क तथा पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के लिए पहल की है।


आइये देखें कि आरटीई (RTE : Right to Education), एनसीएफ (NCF) की गाइड लाइन क्या कहती है-
  • आरटीई में होमवर्क नहीं देने की बात कही गई है
  • एनसीएफ 2005 में रटंत पद्घति से दूर रहने की बात
  • पाठ्क्रम ऐसा हो जो आसानी से याद हो जाए
  • बच्चों को उनके स्तर के पाठ्यक्रम को ही पढ़ने को लागू किया जासीबीएसई की ओर से होमवर्क पर मांगे गए सुझाव
  • हर सप्ताह होमवर्क कितना दिया जाए?
  • होमवर्क किस प्रकार से पूरा किया जाए?
  • पूछा गया है कि क्या सभी विषयों के लिए होमवर्क हो?
  • क्या सभी बच्चों को बराबर होमवर्क दिया जाए?
  • क्या इंटरनेट को होमवर्क का हिस्सा बनाया जाए?
    इधर एक प्रवृत्ति और बढ़ी है कि आईएससीई एवं सीबीएसई से जुड़े निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से इतर दूसरी किताबें थोप दी गई हैं। इन किताबों में बच्चों के स्तर को ध्यान में दिए बगैर ऐसा पाठ्यक्रम लाद दिया है जो उन बच्चों के स्तर का नहीं है। बार-बार पढ़ाने के बाद भी बच्चा जो कोर्स पढ़ रहा है, उसकी अपने जीवन में उपयोगिता सिद्घ नहीं कर पाता है। ऐसे में इस प्रकार के पाठ्यक्रम थोपने से बचना होगा।

    मानसिक दिक्कतों से अलग पढ़ाई के बोझ के कारण बच्चों का शारीरिक विकास भी नहीं हो पा रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चे की हड्डियों को इसी उम्र में बढ़त (Growth) मिलता है। शारीरिक मेहनत के अभाव में संभव नहीं है। बच्चे इंडोर गेम में अधिक भागीदारी करते हैं,  इस कारण से उन्हें सूरज की रोशनी नहीं मिल पाती है, ऐसे में उन्हें विटामिन डी भी नहीं मिल पाता है। इस कारण से शरीर का विकास ठप पड़ जता है। बच्चे के मानसिक विकास के लिए खेल जरूरी है।

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