शिक्षा के लिए...

संदर्भ में देखें तो विगत 5-10  वर्षों में वैश्विक बाजार की ताकतों के हौसले सब हदों को तोड़ रहे हैं। इसलिए शिक्षा के अधिकार और समान स्कूल प्रणाली पर हो रहे हमलों को पहचानना और तदनुरूप उनका उपचार जरूरी हो गया है।  शिक्षा के अधिकार का आज का स्वरूप आने के पहले और बाद में  जो बहस चली है उसमें समान स्कूल प्रणाली और पड़ोसी स्कूल की अवधारणा को हाशिए पर धकेलने के लिए एक नया शगूफा छोड़ा गया या ये कहें कि टोटका आजमाया गया है। वह है "निजी स्कूलों में पड़ोस के कमजोर तबके के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण का।" अक्सर समाचार की सुर्खियां इसी से प्रेरित हो लिख देती हैं कि - "अब पढ़ेंगे कृष्ण और सुदामा साथ - साथ"। लेकिन क्या वास्तव में यह इस हद तक संभव और आसान है?  इसी की पड़ताल करता यह आलेख। 

अब यह  मुद्दा गौण हो गया कि यदि इस प्रावधान के अनुसार 25 प्रतिशत गरीब बच्चे पड़ोस से आएंगे तो जाहिर है कि 75 प्रतिशत फीस देने वाले संपन्न बच्चे पड़ोस से नहीं आएंगे, तो फिर यह बराबरी हुई अथवा खैरात?  इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि इस प्रावधान से कितने गरीब बच्चों को लाभ मिलने की उम्मीद हैं? जाहिर है कि विधेयक में 25 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान का न तो शिक्षा के अधिकार से कोई संबंध है, न समान स्कूल प्रणाली से और न ही 86वें संशोधन के अनुरूप शिक्षा प्रणाली के पुनःनिर्माण से। तब भी विचार यह है कि मौलिक अधिकार का सारा दारोमदार इसी 25 प्रतिशत आरक्षण में है, शायद इसीलिए क्योंकि इसके चलते शिक्षा के निजीकरण व बाजारीकरण की रफ्तार और तेज हो जाएगी।

जून 2006 में योजना आयोग ने 11वीं पंचवर्षीय योजना का जो दृष्टिपत्रा जारी किया। इसमें अचानक बगैर किसी शिक्षा विमर्श के स्कूल वाउचर प्रणाली  का प्रस्ताव रखा गया। वाउचर प्रणाली क्या है? इसके अनुसार, कमजोर तबके के बच्चों को  बाउचर दे दिये जाएंगे जिसको लेकर ये बच्चे जिस भी निजी स्कूल में प्रवेश पा लें, उसकी फीस प्रतिपूर्ति सरकार अदा कर देगी। मुझे तो ये सभी गतिविधियां भी निजीकरण की नीति को ही प्रोत्साहित करने के ही टोटके समझ आते हैं। वाउचर प्रणाली निजी स्कूलों को पिछले दरवाजे से सरकारी धन उपलब्ध कराने और वैश्विक बाजार को संतुष्ट करने का नायाब तरीका से ज्यादा कुछ नहीं लगती है।

11वीं पंचवर्षीय योजना में स्कूली शिक्षा के क्षेत्रा में पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप यानी PPP की जमकर वकालत की गई है। मॉडल स्कूल, नवोदय या सेंट्रल स्कूल या प्रदेश स्तर पर अभिनव विद्यालयों की स्थापनाएं।  यह सब केवल मुट्ठी भर बच्चों के लिए किया जाएगा लेकिन लगभग 13 लाख स्कूलों में करोड़ों बच्चों को उम्दा शिक्षा देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे।  शिक्षा के अधिकार विधेयक में भी इस निजीकरण को रोकने का कोई प्रावधान नहीं है, वरन ऐसा करने की एक प्रकार से इजाजत ही है।  वैश्वीकरण के तहत सरकारी स्कूल प्रणाली को ध्वस्त करने की नीति लागू की गयी। इसमें जब काफी सलता मिल गयी तो विश्व बैंक और बाजार की अन्य ताकतें विभिन्न गैर सरकारी एजेंसियों (NGO) के जरिए तथाकथित शोध अध्ययन आयोजित करके ऐसे आंकड़े पैदा करवा रही हैं कि किसी तरह सिद्ध हो जाये (यानि भ्रम फैल जाए) कि सरकारी स्कूल एकदम बेकार हो चुके हैं और इनको बंद करना ही देश के हित में होगा।

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