भाषा शिक्षा क लिए...

अगर हमे कोई पूछे के भाषा क्या है?और उसका वैज्ञानिक अध्ययन क्यों जरूरी है! ये आधारभूत एवं महत्त्वपूर्ण
प्रश्न विचारणीय हैं।जीवन और जगत से जुड़ी भाषा मानव जाति की अमूल्य सम्पदा है, उसका स्वायत्त अèययन हमें अपनी पहचान तो देता ही है, साथ ही विश्व में अपनी पहचान बनाने में सहायक और महत्वपूर्ण है।
भाषा को जानना और समाज में उसवेफ सपफल प्रयोग की जानकारी वस्तुत: संप्रेषण ही दृषिटयों से जरूरी है। भाषा वेफ प्रति सजग चेतना और उसकी समझ इसमें सहायक सिहोती हैं क्योंकि भाषा मानव समाज वेफ आंतरिक भेदों की अभिव्यकित का सशक्त और सक्षम माध्यम है। यह भी स्मरणीय है कि अपने प्रयोग में जहाँ भाषा नर्इ सर्जनात्मक संभावनाओं से युक्त लचीली और नव्यता लिए हुए होती है, वहीं मानवीय विशेषता वेफ रूप में भाषा जाति-विशिष्ट और सर्जनात्मक-अनुकरण से युक्त भी होती है। हमारी चिंतन प्रक्रिया, भाव और विचाराभिव्यकित का साथ होने होकर भाषा हमारे भाव जगत और बाहय-जगत वेफ बीच तादात्म्य स्थापित करती है। अपने प्रयोजन में बहुमुखी भाषा मन की सर्जनात्मक तथा व्यवहार की सामाजिक शकित वेफ साथ हमारे सामने आती है। 
सरल शब्दोमे कहा जाये तो भाषा हमारी बात पहुँचाने या किसी की बात को हम तक आने का एक तरीका हैं!कोई एक से अधिक तरीके से अपनी बात रख सकता हैं!कोई कवी अपनी बात चार पंक्तिमे कह जाता हैं!वो हो बात कोई वक्ता दस मिनित्मे भी नहीं समजा सकता!ऐसा क्यों होता हैं!?ऐसा कैसे होता हैं!एक ही बात को क्यों एक समजा सकता हैं और एक नहीं समजा सकता या नही समज सकता!
भाषा वस्तुत: वर्ग, आयु, जाति, धर्म, शिक्षा आदि सभी से नियंत्रित होती है क्योंकि समाज की अपनी व्यवस्था और परिसिथति वेफ अनुकूल ही समाज में प्रचलित स्तर भेद होते हैं। भाषा विज्ञान भाषा की अमूर्त-जटिल तथा उसवेफ प्रयोजनपरक प्रकार्य की समझ में सहायक होता है। भाषा की परिभाषा में भी पक्ष यानी उसवेफ मानव के मुख द्वारा उच्चरित यादृचिछक ध्वनी प्रतीकों की व्यवस्था होने तथा उसवेफ प्रयोजनपरक पक्ष यानी उसवेफ भाषा-समुदाय विशेष वेफ विचार-विनिमय दो पक्षों का समाहार दिखार्इ देता है।
भाषा को अगर शात्रीय रूप से देखा जाय तो हम उसका पहले इस्तमाल करिंगे!बाद में उसके नियम समजा के उसे ग्रहण करवाएंगे!शिक्षा शत्र्मे उसे आगमन निगमन प्रक्रिया कहते हैं!सुनने में और कहानेमे हम ऐसा करना चाहिए!ऐ हो सकता हैं!मगर कोई अपनी बात को अमली कारन का जामा पहना के समजा नहीं पता हैं!अपने विचारो को व्यक्त करने का कौशल्य हम केसे बढ़ा सकेंगे!इस के लिए बच्चो के साथ कैसे काम करना चाहिए?

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