नकल से सीखी जाती है भाषा...?
शिक्षकों की एक और मान्यता है कि बच्चे
भाषा तब सीखते हैं जब उन्हें वह भाषा सिखाई जाती है। ऐसी कक्षा का एक
उदाहरण देखिए: कक्षा-एक में बच्चे बैठे हुए हैं। प्रथम
कालाँश लगता है। शिक्षिका कक्षा में आती है व कुर्सी पर बैठ जाती है। थोड़ी देर
बाद बच्चों से कहती है चलो अपनी-अपनी स्लेट या कॉपी लेकर मेरे पास आओ। हम हिन्दी
पढ़ेंगे। बच्चे एक-एक करके अपनी स्लेट या कॉपी लेकर
उनके पास जाते हैं। वह बच्चे की स्लेट पर 3-4 कॉलम बनाती हैं व एक कोने में ‘अ’ लिखकर बच्चे से कहती हैं ऐसे ही और बनाओ।
इसी तरह वह कक्षा के सभी बच्चों को एक-एक वर्ण लिखने को देती हैं, जब बच्चे दिए गए वर्ण को लिख लेते हैं तो वह
दूसरा वर्ण लिखने को देती हैं। इसी तरह कक्षा में कार्य चलता रहता है।
इस पूरे समय में एक बार कुछ ऐसा हुआ जो हटकर
था। वह था बार-बार शिक्षिका द्वारा वर्ण लिखकर लाने को कहने पर एक बच्चे ने उनसे
कहा मुझे नहीं लिखना है। कुछ और कराओ। लेकिन शिक्षिका के पास कुछ और कराने को नहीं
था। अत: उन्होंने एक नया वर्ण फिर से बच्चे को लिखने के लिए दे दिया।अब इस बात पर गौर करें कि भाषा सीखने की
प्रक्रिया के दौरान बच्चे तुतलाते हैं। क्या हम उन्हें तुतलाना सिखाते हैं? वयस्क तो तुतलाकर बोलते नहीं ताकि बच्चों
को उनकी नकल करने का मौका मिले व बच्चे वैसा बोलना सीखें। बच्चे नित नए शब्द व
वाक्य बनाते हैं क्या हम प्रत्येक वाक्य को उनके सामने बोलते हैं? ताकि वे उसकी नकल कर सकें और सीख सकें। क्या
हम कभी बच्चे को बोलते हैं, ‘पापा मुझे
मोटरसाइकिल पर घूमने जाना है।’
‘पापा चॉकलेट खानी है।’
एक बच्ची व वयस्क की बातचीत का उदाहरण
देखिए:
मेरे दोस्त की बच्ची (तीन साल) व उसकी बुआ
बातचीत कर रहे थे।
बुआ: बोलो, मैं अच्छी हूँ।
बच्ची : मैं अच्छी हूँ ।
बुआ: मैं लड़की हूँ ।
बच्ची : मैं लड़की हूँ ।
बुआ: मैं गन्दी हूँ ।
बच्ची : आप गन्दी हो।
अब आप ही सोचिए। इस बच्ची को कैसे पता चला
कि उसे अपने-आप को गन्दा नहीं कहने के लिए वाक्य में कहाँ व क्या-क्या
परिवर्तन करने होंगे? वह यह कहना कैसे
सीखी होगी नकल से अथवा आपके बताने से अथवा.... ?
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