गाँव छोटा... No...

कोन कहता हैं!
में नही कर पाउँगा!
इन्हें देखे,एक छोटेसे गाँव की महिला हैं।जो एक नॅशनल कोन्फ्रंस को रेकॉर्ड कर रही हैं।हमे ऐ नहीं सोचना चाहिए की हम कहाँ हैं।कहाँ पैदा हुए हैं।हमे ऐ सोचना चाहिए की हम क्या कर सकते हैं।
मेरे एक दोस्त ने मुझे ऐ फोटॉ भेजा।मुझे पसंद आया।में उसके बारेमे ज्यादा नहीं जानता!जो जानकारी मेरे पास थी वो आपको शेर कर रहा हूं।

मेने कई ओरतो को काम करते देखा हैं!दुःख इस बातका हैं की आज भी ओरत को अपना पसंदीदा काम करने हेतु परमिशन लेनी पड़ती हैं!ऐसी फोटो को हम शेर करते हैं!मगर हमसे जुडी हुई महिला को क्या हम प्रोत्साहित करते हैं?

ज्यादातर हमारा समय किसी को प्रभावित करनेमे जाता हैं!प्रोत्साहन की तो हम सिर्फ बात करतें हैं!अगर मेरी खाहिश हैं की मेरी बहन या बेटी से सदी करने वाला उसे समजे!अगर में मनाता हु की मेरे दामाद को मेरी बेटी को समजना चाहिए तो क्या मेरे ससुर एइसा नहीं मानते होंगे?हमारी टीम श्रीमती मोल्लाम्मा को ढूंढने में लगी हैं!सिर्फ राजकीय कुछ सन्मान या सिर्फ पंचायतोमे कुछ प्रधान बना देनेसे महिलाए आगे नहीं आएँगी!

महिलाए जिस क्षेत्रमे काम कराती हैं उसमे अगर पुरूष चला जाये तो कहेंगे कुछ नया करेंगे...!ऐसा ही कुछ 'नया करेंगी 'बोला तो जाता हैं मगर अविश्वास के स्थान पे!मेरा व्यक्तिगत मानना हैं की महिलाओ को सिर्फ बातचीत या कविता में ही नहीं व्यावहारिक जीवनमे भी बढ़ावा देना चाहिए!सिर्फ महिला दिन से कुछ नहीं होगा!

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