मधुशाला....
हिन्दी गीत काव्य में हरिवंशराय वाच्चन का नाम अमर हैं !कई अमर काव्य,गीत और
फ़िल्मी गीत उन्हों ने दिए हैं !एक सर्जक के रूप में उन्हें सारे भारत में जाना
जाता हैं !
भारत के हिन्दी काव्य समाज में एक नया किरण निकालने वाला था !२७ अगस्त १९३३ के
दिन उसकी शरुआत हुई !१९३५ में उसे प्रकाशित किया गया !सारे भारत में उसकी कई लाख
प्रते बिक चुकी हैं !पॉकेट बुक के इतिहास में सबसे ज्यादा बिकने वाला यह पुस्तक याने ‘मधुशाला’
मेरे एक दोस्त ने मुझे १९३५ में छपी यह किताब भेजी !में अब आपकी खिदमत में
पुन:लेखन कर रहाहूँ ! इस के सारे अधिकार हरिवंशराय बच्चान जी के हैं ! यहाँ अच्छी
बात बताने के इरादेसे लिख रहा हूँ !
यह एक ऐसा पुस्तक हैं जिसकी सुवर्ण जयंती वर्ष को सरे देश ने उत्साह पूर्वक
मनाया !इस अवसर में बच्चन जी ने कई और अंतरे भी जोड़े !जिसे में यहाँ बारी बारी
आपको देने के लिए भेजता रहूँगा !
बस,आप के आनंद के लिए आपकी सेवामे...
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भावो के अंगूरों की आज बना लाया हाला ,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला ;
पहले भोग लगा लूँ तेरा ,फिर प्रसाद जग पायेगा ;
सबसे पहले तेरा स्वागत कराती मेरी मधु शाला |
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प्यास तुजे तो ,विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला;
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कबका बार चूका ,
आज निछावर कर दूंगा में तुज़पर जग की मधुशाला |
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प्रियतम तु मेरी हाला हैं ,में तेरा प्यासा प्याला ,
अपने को मुज़में भरकर तू बनाता हैं, पीनेवाला;
में तुज़को छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता ;
एक दूसरे को हम दोनों आज परस्पर मधुशाला |
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भावुकता अंगूर लाता से खिंच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया हैं भरकर कविता का प्याला ;
कभी न कण भर खाली होगा , लाख पिएं, दो पिएं !
पाठकगण हैं पीनेवाले ,पुस्तक मेरी मधुशाला |
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मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाल ,
भरता हूँ इस मधु से आपने अंतर का प्यासा प्याला;
उठा कल्पना के हाथो से स्वयं इसे पी जाता हूँ;
अपने ही में हूँ मैं साकी , पिने वाला ,मधुशाला |*५
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